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ग़ज़ल -- भले मैं कभी मुस्कुराया नहीं ( दिनेश कुमार )

122--122--122--12

निगाहों से उसने पिलाया नहीं
मज़ा मुझको महफ़िल में आया नहीं

उदासी भी कब आई रुख़ पर मेरे
भले मैं कभी मुस्कुराया नहीं

बशर कौन है वो जिसे वक़्त ने
इशारों पे अपने नचाया नहीं

अभी दाद अपनी सँभाले रखो
अभी शे'र मैंने सुनाया नहीं

मैं झूठा हूँ चल ठीक है। ये बता
मुझे आइना क्यों दिखाया नहीं

दिलों के मिलन पर है सब मुनहसिर
कोई अपना कोई पराया नहीं

तू पत्थर है या एक हीरा 'दिनेश'
कोई जौहरी जान पाया नहीं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by surender insan on June 26, 2017 at 12:04am
वाह वहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है जी। शेर दर शेर दिली दाद कबूल फरमाये जी।
Comment by vijay nikore on June 24, 2017 at 11:20am

गज़ल बहुत अच्छी बनी है।  मुबारकबाद ।

Comment by Ram Ashery on May 28, 2017 at 11:17am

अति सुंदर अभिव्यक्ति है आपको हृदय से बधाई स्वीकार हो 

Comment by Mahendra Kumar on May 15, 2017 at 10:48am

मैं झूठा हूँ चल ठीक है। ये बता
मुझे आइना क्यों दिखाया नहीं

वाह! क्या बात है. इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय दिनेश जी. सादर. 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 23, 2017 at 4:34pm
वाह आदरणीय बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई..बधाई

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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 21, 2017 at 4:21pm

उदासी भी कब आई रुख़ पर मेरे
भले मैं कभी मुस्कुराया नहीं

बशर कौन है वो जिसे वक़्त ने
इशारों पे अपने नचाया नहीं

अभी दाद अपनी सँभाले रखो
अभी शे'र मैंने सुनाया नहीं/// वाह आ. दिनेश भाई क्या खूब बहुत सुंदर, ये अशआर खासे पसंद आए हालाँकि पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी.

बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2017 at 9:06pm

वाह वाह वा.. क्या खूब ग़ज़ल हुई है आ. दिनेश भाई ..
बधाई 

Comment by Samar kabeer on April 20, 2017 at 6:11pm
जनाब दिनेश कुमार'दानिश'जी आदाब,ये ग्गज़ल भी उम्दा हुई,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Ravi Shukla on April 20, 2017 at 1:21pm

अादरणीय दिनेश जी बहुत बढि़या गजल कही है आपने दिली मुबारक बाद कुबूल करें

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