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कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले

2122 1122 1122 22/112
कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले
वो मेरे दोस्त मुझे रस्ता दिखाने वाले

वक्त ने, काश! उन्हें रुकने दिया होता ज़रा
साथ ही छोड़ गए साथ निभाने वाले

मुफ़लिसी मक्र की छाई है सियाही अब भी
पर बताओ हैं कहाँ शम्अ जलाने वाले

अपने क़ातिल से शिकायत नहीं कोई मुझको
कर गए ग़र्क मेरी कश्ती, बचाने वाले

खूब तासीर नज़र आई मुहब्बत की यूँ
रो पड़े जाँ को मेरी फ़ैज़ उठाने वाले

एकता टूटने पाए न कभी, मसनद पर
आके बैठे हुए हैं हमको लड़ाने वाले

अपना इतिहास बताओ तो सही पहले तुम
दुनिया को देश का इतिहास बताने वाले

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on April 27, 2017 at 5:49pm

आदरणीय शिज्‍जु भाई बहुत बढि़या गजल कही आपने दाद और मुबारक बाद पेश है ।

Comment by narendrasinh chauhan on April 27, 2017 at 5:19pm

बहोत सुन्दर रचना 

Comment by Arpana Sharma on April 26, 2017 at 9:56pm
" एकता टूटने पाए ना कभी, मसनद पर, आपके बैठे हुए हैं हमें लड़ाने वाले.." , बहुत अच्छी रचना हुई है।
Comment by Sushil Sarna on April 26, 2017 at 2:11pm

अपने क़ातिल से शिकायत नहीं कोई मुझको
कर गए ग़र्क मेरी कश्ती, बचाने वाले।।

वाह आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब गज़ब के अशआर कहे हैं आदरणीय ... दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2017 at 6:41pm

बहुत ख़ूब आदरणीय शिज्जू भाई ... बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
कुछ अशआर और कसे जा   सकते हैं... 
बधाई 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 25, 2017 at 6:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम मो. आरिफ़ साहिब आपका

Comment by Mohammed Arif on April 25, 2017 at 6:01pm
कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले
वो मेरे दोस्त मुझे रस्ता दिखाने वाले। वाह!वाह !!
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 25, 2017 at 5:50pm

बहुत बहुत शुक्रिया आपका मोहतरम तस्दीक अहमद साहिब, ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसलाअफ़ज़ाई करने के लिए, मिसरा सुधार दिया है

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 25, 2017 at 1:37pm
मुहतरम जनाब शकूर साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें --मतले के सांनी मिसरे में लगता है कोई लफ्ज़ छूट गया है

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