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ग़ज़ल...गमे दिल अब मुझे आराम दे दो

1222 1222 122
मेरी बेचैनियों को नाम दे दो
बहुत टूटा हूँ अब अंजाम दे दो

उन्हें मैं याद कर के थक चुका हूँ
गमे दिल अब मुझे आराम दे दो

पुरानी बात है आहें, तड़पना
मुहब्बत को नये आयाम दे दो

कि जिसको सोचते ही मुस्कुरा दूँ
तसव्वुर के लिए वो शाम दे दो

कहाँ है मीत वो किस हाल में है
हवाओ कोई तो पैगाम दे दो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 16, 2017 at 9:50pm
आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय महेंद्र जी..सादर
Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 10:13pm

बढ़िया ग़ज़ल है आ. बृजेश जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 9, 2017 at 11:13pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी..उत्साहवर्धन के लिए आपको शत शत नमन सादर
Comment by Ravi Shukla on July 9, 2017 at 2:36pm
आदरणीय बृजेश कुमार जी बहुत अच्छी गजल कही आपने इसके लिए दिली मुबारकबाद पेश है
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 8, 2017 at 11:15pm
आपका हार्दिक अभिनन्दन एबं आभार आदरणीय लक्षमण धामी जी..सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 8, 2017 at 2:11pm
आ. भाई बृजेश जी अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 7, 2017 at 10:12pm
बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश जी..स्नेह बनाये रखिये..सादर

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Comment by rajesh kumari on July 7, 2017 at 8:49pm

बहुत प्यारी ग़ज़ल हुई है बृजेश कुमार जी दिल से दाद हाजिर है |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 7, 2017 at 8:32pm
आपके मनोहारी शब्दों ने नवउत्साह का संचार हुआ आदरणीया डा. प्राची जी..आपका हार्दिक अभिनन्दन सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 7, 2017 at 8:29pm
आदरणीय विजय जी सुन्दर शब्दों में स्नेहिल उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार..सादर

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