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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन । 

पिछले 80 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :


"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-81

विषय - "पावस"

आयोजन की अवधि- 14 जुलाई 2017, दिन शुक्रवार से 15 जुलाई 2017दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल

नज़्म

हाइकू

सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु,  एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.    

  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 14 जुलाई 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें


मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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आदरणीय गोपाल सर उत्तम, उत्तम उत्तम सृजन,हार्दिक बधाई स्वीकारें!

हलके होते हैं वे सचमुच जो भीतर से रीते हैं

भारी-भरकम ही दुनिया में शीश उठा के जीते हैं 

कमाल कमाल कमाल ! आपकी प्रस्तुति ने आयोजन के स्तर को ऊँचा किया है आदरणीय गोपाल नारायन जी. बहुत खूब !

सादर

एक गीत प्रयास----

गूँज उठी  पावस  की धुन       
सर-सर-सर, सर-सर-सर

आसंमा से आंगन में उतरी

छिटक-छिटक बरखा बौछार

चहूँ फैला माटी की खुशबू

संग थिरक रही है डार-डार

गूँज उठी  पावस  की धुन       

सर-सर-सर, सर-सर-सर     

उमगते अंकुर धरा खोलकर

हवा में उठी पत्तो की करतल

बादल रच रहे गीत मल्हार

हर्षित मन से  झुमता ताल

 गूँज उठी  पावस  की धुन       

सर-सर-सर, सर-सर-सर      

गरजते बादल, बरखा की भोर

बूँदों  की  रिमझिम  रिमझिम

पपिहे की पीहू ,कोयल का शोर 
आस मिलन जुगनू सी टिमटिम

गूँज उठी  पावस  की धुन       
सर-सर-सर, सर-सर-सर

मौलिक व अप्रकाशित

मोहतरमा नयना(आरती)कानिटकर जी आदाब,प्रदत्त विषय पर बहुत सुंदर गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीया नयना आरती जी आदाब, बहुत ही प्यारा गीत , बहुत अच्छा वर्णन । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

गूँज उठी  पावस  की धुन       
सर-सर-सर, सर-सर-सर....वाह ,..ये ध्वनि का जो आपने प्रयोग किया है   बहुत सुन्दर है ..और पूरे गीत को अलग ही ऊंचाई दे रहा है ...हार्दिक बधाई आदरणीया नयना जी 

आदरणीया नयना ताई, हार्दिक बधाई इस प्रतुति के लिए,सादर नमन

आदरणीया नयना कानिटकर जी सादर, प्रदत्त विषय आधारित गीत पर सुंदर प्रयास हुआ है आपका. बहुत-बहुत बधाई. सादर.

आदरणीया नयना जी, आपकी रचना गीति विधा की संवाहक है. प्रयास अच्छा लगा. आपका प्रयास सतत बना रहे. हार्दिक बधाइयाँ. 

वैसे गीत की विशेषता अंतरलय के होने से बहुमुखी हो जाती है. इसके प्रति ध्यान बना रहे. 

शुभ-शुभ

पावस / गजल ( दूसरी प्रस्तुति)

2222     222    2222    222

जंगल पोखर ताल नदी सब हैं प्यासे पावस में
सुनकर  बदरा  परदेशी दौड़े  आए  पावस में।1।

अपनी  लम्बी नीदों  से दादुर  जागे पावस में
सजनी हर्षित दौड़ी सुन साजन लौटे पावस में।2।

कितने डूबे पग पग पर कितने उतरे पावस में
बरबादी का  हाल बने  कितने  सूबे पावस में।3।

पर्वत  पर्वत  जगह जगह   शोते फूटे पावस में
नदिया बनके झूम रहे चहँुदिश नाले पावस में।4।

गुरबत  वाली  बस्ती  के  घरघर  चूँते पावस में
फिर भी नूतन आस लिए हलधर नाचे पावस में।5।

जामुन औ‘ अमरूदों संग आम हैं मीठे पावस में
जी भर सब मिल  खाएँगे  पंछी सोचे पावस में।6।

मन बैरागी राग सजा  अल्हड़  जैसा डोल रहा
बूढ़ा तन  फिर  अपने को  कैसे रोके पावस में।7।

दर्पण की हर रीत गई माटी संग जो नीर मिला
कैसे गोरी ताल में अपना मुखड़ा देखे पावस में।8।

मन रोता है बिरहन का साजन जो परदेश गए
पी संग देखे झूल रहीं  सखियाँ झूले पावस में।9।

कीट  पतंगे  घर  करते  जिनके  काटे रोग लगे
मत रखना माँ कहती है खिड़की खोले पावस में।10।

रिमझिम में यूँ भीग तनिक तनमन की तूँ प्यास बुझा
क्यों चलता  है  अरे! बावले   छाता  खोले   पावस में।9।

मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब, पावस पर बेहतरीन दूसरी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई आरिफ जी,गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।

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