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'ये लहू दिल का चूस्ती है बहुत'

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान

ज़ह्न में यूँ तो रौशनी है बहुत
पर जमी इसमें गंदगी है बहुत

इतना आसाँ नहीं ग़ज़ल कहना
ये लहू दिल का चूस्ती है बहुत

एक एक पल हज़ार साल का है
चार दिन की भी ज़िन्दगी है बहुत

चींटियाँ सी बदन पे रेंगती हैं
लम्स में तेरे चाशनी है बहुत

फ़न ग़ज़ल का "समर"सिखाने को
एक 'दरवेश भारती'है बहुत
---
लम्स-स्पर्श
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on July 20, 2017 at 3:12pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
टंकण त्रुटि की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिये भी धन्यवाद ।
Comment by Samar kabeer on July 20, 2017 at 3:03pm
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on July 20, 2017 at 3:01pm
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब,डॉ.दरवेश भारती साहिब हमारे मुल्क की अज़ीम शख़्सियत हैं,जो इल्म-ए-अरूज़ के माहिर होने के साथ साथ एक पत्रिका "ग़ज़ल के बहाने" के माध्यम से ग़ज़ल का फ़न भी लोगों को सिखाते हैं ।
ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on July 20, 2017 at 2:55pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on July 20, 2017 at 2:53pm
जनाब मोहित जी आदाब,आपका बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on July 20, 2017 at 2:52pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on July 20, 2017 at 2:50pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on July 20, 2017 at 2:45pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 20, 2017 at 11:51am

आदरणीय समर भाई , एक और बेहतरीन गज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें । यद्यपि मात्रिकता सही है , फिर भी .. चूस्ती को चूसती करना अधिक उपयुक्त होगा ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 19, 2017 at 9:31pm
वाह वाह और वाह आदरणीय समर कबीर जी...क्या ही शानदार.जानदार ग़ज़ल कही है आपने....यूँ तो सभी अशआर बहुत ही आला दर्जे के हैं.. चौथा शेर तो उफ़्फ़..कातिलाना है..वाह वाह...वाह वाह ....वाह वाह

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