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2122--1122--1122--112


फैसले के लिए सिक्का न उछाला जाए
जान माँगे जो वतन वक़्त न टाला जाए

हाँ मैं हूँ मुल्क़ तुम्हारा न उछालो मिट्टी
नौज़वानों मुझे गड्डे से निकाला जाए

अच्छे अच्छों के किये होश ठिकाने लेकिन
होश में हो जो उसे कैसे सँभाला जाए

आपने कह दिया झट से कि मैं, मैं हूँ ही नहीं
मेरे भीतर मुझे थोड़ा तो खँगाला जाए

ज़ह्र के दाँत उखाड़ो कि कुचल डालो फन
आस्तीनों में यूँ नागों को न पाला जाए

मुफ़लिसी ने मिरी आगाह किया है मुझको
यार पव्वे के लिए वोट न डाला जाए

कोई 'खुरशीद' कहीं हो तो सुने मेरी सदा
गाँव के आख़री घर तक भी उजाला जाए

मौलिक और अप्रकाशित।
© 'खुरशीद' खैराड़ी जोधपुर।

09413408422

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Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 15, 2017 at 12:15am

आदरणीय  khursheed khairadi साहब,
यूँ पूरी ग़ज़ल ही बहुत उम्दा हुई है पर मक्ता का तो जवाब नहीं | दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें | 

Comment by Ravi Shukla on August 6, 2017 at 1:03pm

आदरणीय खुर्शीद जी कमाल की ग़ज़ल कही आपने हर शेर उम्दा है मकता खासतौर पर पसंद आया इसके लिए दिली मुबारकबाद कुबूल करें

Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 9:47am

बहुत ही अच्छी गज़ल कही है, जनाब ख़ुर्शीद खैराड़ी साहिब । दिल से बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2017 at 11:41am

आ. भाई खुर्शीद जी सुंदर गजल हूई है। हार्दिक बधाई ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on August 1, 2017 at 9:27am

कोई 'खुरशीद' कहीं हो तो सुने मेरी सदा
गाँव के आख़री घर तक भी उजाला जाए
वाह वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है आदरणीय खुर्शीद जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 31, 2017 at 8:06pm
वाह वाह आदरणीय बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई..सादर
Comment by Samar kabeer on July 31, 2017 at 3:33pm
जनाब ख़ुर्शीद खैराड़ी साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'आपने कह दिया झट से कि मैं,मैं हूँ ही नहीं'
इस मिसरे में 'मैं,मैं'कुछ अच्छा नहीं लग रहा है ।

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