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ग़ज़ल (नाज़ कब वो भी उठा पाते हैं दीवाने का )

(फाइलातुन -फ़इलातुन-फ़इलातुन-फेलुन )

जिन से आबाद हर इक गोशा है वीराने का |
नाज़ कब वो भी उठा पाते हैं दीवाने का |

इंतज़ारी में कटी उम्र नहीं इसका गम
रंज है आपका वादे से मुकर जाने का |

कमसे कम मेरे ख़यालों में ही आ जाया करो
वक़्त कब मिलता है तुम को मेरे घर आने का |

लाख तू मेरी वफ़ाओं को भुला दे दिल से
अज़्म मुहकम है मेरा प्यार तेरा पाने का |

कोई इक बूँद को तरसे कोई भर भर के पिए
खूब दस्तूर है साक़ी तेरे मैखाने का |

जान लेने के लिए थोड़ी सी खातिर कर दी
रात मुँह चूम लिया शमअ ने परवाने का |

तुझ से बद ज़न हुआ तस्दीक़ जो तेरा दिलबर
ग़ैर को तू ने ही मौक़ा दिया बहकाने का |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 19, 2017 at 3:05pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by नाथ सोनांचली on November 19, 2017 at 2:24pm
मसे कम मेरे ख़यालों में ही आ जाया करो
वक़्त कब मिलता है तुम को मेरे घर आने का |

वआह वाह वाह, आद0 तस्दीक अहमद खान साहिब सादर अभिवादन, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें। सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 19, 2017 at 9:55am
मुहतरम जनाब बासुदेव साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 19, 2017 at 9:54am
मुहतरम जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on November 19, 2017 at 7:20am
आ0 तस्दीक अहमद खान जी इस खूबसूरत ग़ज़ल की बधाई।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 18, 2017 at 8:59pm
बहुत ख़ूब।‌ बढ़िया प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 18, 2017 at 3:38pm
जनाब ब्रजेश कुमार साहिब ,आपकी ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 18, 2017 at 3:09pm
वाह वाह आदरणीय खूब ग़ज़ल हुई..सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 18, 2017 at 12:42pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई
का बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by SALIM RAZA REWA on November 18, 2017 at 10:16am

कोई इक बूँद को तरसे कोई भर भर के पिए 
खूब दस्तूर है साक़ी तेरे मैखाने का |........

जनाब तस्दीक़ साहिब इस ग़ज़ल पर बहुत मुबारकबाद आपको।

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