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जग में करूँ प्रसार (गीत) - रामानुज लक्ष्मण

मुक्त हृदय से आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार,

माँ वीणा सद्ज्ञान मुझे दो, जग में करूँ प्रसार ||

माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की गोद।
मिला छत्र छाया में उनके,जीवन का आमोद।।

किये बहत्तर वर्ष पार ये, बिना किसी अवसाद 
स्वर्गलोक से मिलता मुझको,उनका आशीर्वाद।।
माँ-बापू से पाया मैंने,जीवन में संस्कार।

मिला सनातन धर्म रूप में, मुझको भारत वर्ष ।
ऋषि-मुनियों का देश यही है,इसका मुझको हर्ष ||
वन-उपवन में रोप सकूँ मै, कुछ सुन्दर से वृक्ष,
मिले सफलता जनमानस को,पूर्ण करें सब लक्ष्य || 
चुका सकूँ मैं भारत माँ का, अंशमात्र भी भार।

संस्कारी परिवार हमारा,खुशबूं करें प्रदान। 
मिला मुझे सहयोग सभी का,पाने को मुस्कान।।
गुरुवर को मैं दे पाऊँ क्या, ऐसी कुछ सौगात?
रवि के ख कहाँ दीप की,क्या कोई औकात।।
प्राण प्रिया का सदा रहेगा, जीवन भर आभार।

मुक्त हृदय से आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार।
माँ वीणा सद्ज्ञान दो ऐसा, जग में करूँ प्रसार ।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

- लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 29, 2017 at 6:01pm

जी | सही कहा आपने आदरणीय Vijay Nikore जी | आजकल ऐसी भावनाएं देखने में नहीं आती | जिन्दगी तनावभरी हो गई और संवेदनाएं मर गई | एक साहित्यकार का रचना धर्म निभाते हुए समाज को दिशा दे सके | यह कर्त्तव्य तो अपना है ही | सादर आभार आपका आदरनी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2017 at 4:21pm

आपकी सम्बल प्रदान करती प्रेरक प्रतिक्रया देकर उत्साहवर्धन करने और सार्थक सुझावों के लिए हार्दिक आभार आदरणीय रामबली गुप्ता जी | संशोधन कर दिया है |  सादर नमन 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2017 at 3:49pm

आपकी प्रेरक प्रतिक्रया के लिए हार्दिक आभार आपका श्री सुरेन्द्र कुंमर शुक्ल भ्रमर जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2017 at 3:48pm

बहुत बहुत आभार आपका श्री बृजेश कुमार बृज जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2017 at 3:46pm

गीत रचना सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री मोहम्मद आरिफ साहब 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2017 at 3:45pm

हार्दिक आभार आपका श्री सुरेन्द्र नाथ सिंह कुश्क्षत्रप जी 

Comment by vijay nikore on November 23, 2017 at 11:32am

//माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की गोद।
मिला छत्र छाया में उनके,जीवन का आमोद।।//

माता-पिता के प्रति ऐसी भावना हम सभी में जीवन भर कायम रहे  तो कितना अच्छा है।

सुन्दर गीत के लिए बधाई।

Comment by रामबली गुप्ता on November 23, 2017 at 6:31am
सरल, सहज भावों और शब्द चयन के साथ बहुत ही सुन्दर गीत रचा है आपने आदरणीय भाई रामानुज लक्ष्मण जी। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।सादर
आपने उक्त गीत के लिए सरसी छंद को आधार बनाया है जिसकी मधुरिम गेयता के कारण रचना और सुंदर हो गयी है।
वर्ष पार किये बहत्तर,,,,,, में गेयता भंग है यद्यपि शब्दकल ठीक हैं। इसे इस प्रकार कर लें-'किये बहत्तर वर्ष पार ये'
लक्ष को लक्ष्य के स्थान पर प्रयुक्त करना उचित होगा क्या? जरा विचारें
'सूरज सम्मुख' के बीच एक कारक चिन्ह 'के'की आवश्यकता प्रतीत हो रही है । इसे 'रवि के सम्मुख' कर लें।
'क्या कोई औकात' के स्थान पर 'है कोई औकात' कर लें। शेष सब शुभ शुभ।सादर
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on November 21, 2017 at 6:24pm

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति और सार्थक
भ्रमर ५

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 21, 2017 at 1:03pm
उत्तम भावपूर्ण गीत हुआ आदरणीय..सादर

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