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ग़ज़ल--बह्र फेलुन×5+फा

कुछ भूला कुछ पहचाना सा लगता है
कोई मुझको दीवाना सा लगता है ।

थोड़ी उलझन थोड़े आँसू जैसा वो
जीवन का ताना बाना सा लगता है ।

ग़ुरबत में देखा जो मुझको यारों ने
बोले कोई अंजाना सा लगता है ।

वक़्त बदलते देर नहीं लगती भाई
अपना होकर बेगाना सा लगता है ।

शाइर बनकर घूम रहा है देखो तो
'आरिफ़'कोई दीवाना सा लगता है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on November 25, 2017 at 12:31am
वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई । बधाई ।
Comment by रक्षिता सिंह on November 24, 2017 at 9:55pm
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ,आदरणीय आरिफ जी!
"वक्त बदलते देर नहीं लगती भाई
अपना होकर बेगाना सा लगता है।"
Comment by Mohammed Arif on November 24, 2017 at 8:23am
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मोहित मुक्त जी । लेखन सार्थक हुआ ।
Comment by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 8:22pm
दाद-ओ-तहसीन का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय सुशील सरना जी ।
Comment by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 8:21pm
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय गोपाल नारायण जी ।
Comment by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 8:20pm
बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब तस्दीक़ अहमद साहब ।
Comment by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 8:19pm
बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब अफ़रोज़ 'सहर' साहब ।
Comment by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 8:18pm
बहुत-बहुत शुक्रिया आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
Comment by Sushil Sarna on November 23, 2017 at 8:04pm

कुछ भूला कुछ पहचाना सा लगता है
कोई मुझको दीवाना सा लगता है ।

थोड़ी उलझन थोड़े आँसू जैसा वो
जीवन का ताना बाना सा लगता है ।

वाह खूबसूरत अहसासों की इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई आदरणीय मो.आरिफ साहिब।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2017 at 7:44pm

आआ० आरिफ साहिब अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद

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