For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- सर पे मेरे तभी ईनाम न था।

बह्र - फाइलातुन मफाइलुन फैलुन

काबिले गौर मेरा काम न था
सर पे मेरे तभी ईनाम न था।

मैं जिसे पढ़ गया धड़ल्ले से,
वाकई वो मेरा कलाम न था।

हाट में मोल भाव क्या करता,
जेब में नोट क्या छदाम न था।

लोग मुँहफट उसे समझते थे,
जबकि वो शख्स बेलगाम न था।

गाँव के गाँव बाढ़ से उजड़े
बाढ़ का कोई इन्तजाम न था।

सर झुकाया नहीं कभी उसने,
वो शहंशाह था गुलाम् न था।

उसका मालिक तो बस खुदा ही था,
घर में जिनके दवा का दाम न था।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 985

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 17, 2017 at 6:41pm

अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय...बधाई

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 17, 2017 at 5:41pm

आ राम अवध् जी ,नमन , बेहतरीन ग़ज़ल कहीं आपने, मुझे पसंद आया ,शिल्प के बारे में गुणी जन बताएँगे 

Comment by नाथ सोनांचली on December 17, 2017 at 4:45pm

आद0 रामअवध जी सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल कहीं आपने, शेष गुनिजनो की बात संज्ञान में लीजियेगा। मेरी शैर दर शैर बधाई हाजिर है।

Comment by Afroz 'sahr' on December 17, 2017 at 3:44pm
आदरणीय राम अवध जी इस रचना पर बधाई आपको ,,ग़ज़ल के बारे में जनाब तस्दीक़ साहब कह ही चुके हैं
फिर भी एक बात बताना चाहूँगा ।
आपने काफ़िया "छदाम" बांधा है जो कि एक पुरानी मुद्रा सिक्के की शक्ल में हुआ करती थी। दर अस्ल "छदाम " पुल्लिंग नहीं । स्त्रीलिंग है। देखिएगा सादर,,,,,,
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 17, 2017 at 10:43am

जनाब राम अवध साहिब ,इस बह्र में इनआम  क़ाफ़िया नहीं हो पायेगा ,सानी मिसरा आप चाहें तो यह कर सकते हैं ।"मेरा फहरिस में उनकी  नाम न था "

आपने एक अरकान गलत लिखा है ,वो फेलुंन नहीं बल्कि  फइलुन है ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 17, 2017 at 8:06am

आदर्णीय मोहम्मद आरिफ साहब ग़ज़ल सराहना केलिये सादर आभार

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 17, 2017 at 8:05am

आदर्णीय तस्दीक अहमद साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया मैं आपके द्वारा किये गये इस्लाह के अनुसार ग़ज़ल में सुधार करूँगा। क्या इन आम लिखने से मिसरा सही हो जायेगा।

Comment by Mohammed Arif on December 17, 2017 at 7:38am

आदरणीय राम अवध जी आदाब,

                        बड़े पैमाने च्छे अश'आरों से सजी बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र माकूल । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 16, 2017 at 10:16pm

जनाब राम अवध साहिब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

मतले में ईनाम क़ाफ़िया नहीं बंध पायेगा ,सही शब्द इनआम है ।

आखरी शेर में शुतुरगुरबा और रदीफैंन का दोष है ।सानी मिसरेमें जिनके की जगह जिसके करलें और उला मिसरा यूँ कर सकते हैं "था भरोसा ख़ुदा पे सिर्फ उसे" ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service