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1

इंसानी भूल

लापरवाह लोग

धूल ही धूल

2

प्यारी सी धुन

सुबह का मौसम

प्यार से सुन 

3

सुर से सुर

दूर हुये शिकवे

गीत मधुर  

4

धुंध ही धुंध

शहर का ज़हर

धुए की गंध

5

बढ़ती ठण्ड

कंपकंपाते लोग

जारी है दण्ड

6

ज़ख़्मी है सीना

हौले से पग बढ़ा

छोड़ दे कीना    { कीना = द्वेष, बैर, दुर्भाव}

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by नादिर ख़ान on December 31, 2017 at 6:10pm

आदरणीय अजय तिवारी जी आपने कोशिश को सराहा बहुत शुक्रिया आपका, रचनाकर्म सार्थक हुआ ....

Comment by Ajay Tiwari on December 30, 2017 at 4:44pm

आदरणीय नादिर साहब,

अक्सर हाइकू गद्य भर हो कर रह जाते हैं लेकिन आप ने काव्यात्मकता को सुरक्षित रखते हुए खूबसूरत हाइकू प्रस्तुत किये हैं. हार्दिक बधाई.

Comment by नादिर ख़ान on December 30, 2017 at 4:05pm

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब आपने बहुत बारीकी से रचना को पढ़ा.... रचना पर  समय देने और हौसला अफजाई का शुक्रिया ...

Comment by Mohammed Arif on December 30, 2017 at 1:47pm

आदरणीय नादिर खान साहब आदाब,

                             इंसानी करतूत, मौसम की चाल और बढ़ते ठंड के प्रकोप को दर्शाते बेहतरीन और सटीक हाकु के लिए दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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