For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

***नामर्द*** राहिला (लघुकथा)

"लगता है एक तारीख है।" बस्ती में रोने -पीटने की आवाज सुनकर उसने मर्दानी आवाज में कहा।
"अब महीने के लगभग दस दिन यही चीख पुकार मची रहेगी।"दूसरी, ढोलक कसते हुए बोली।
"हाँ... सही कह रही हो...,मन तो करता है निकम्मों के हाथ पैर तोड़ दूँ।"
"तूने तो मेरे दिल की बात कह दी।"
"बेचारी ये औरतें सारा-सारा दिन दूसरों के चूल्हें -चौके समेटती फिरती है।और अंत में ये ईनाम मिलता है।"
"क़िस्मत तो देखो इन जुआरियों ,शराबियों की, निकम्मो को कैसी सोने के अंडे देने वाली मुर्गियां हाथ लगी है।" कि तभी-

"मत मारो ...,मेरी नहीं तो कम से कम अपने होने वाले बच्चे की तो ख्याल करो...,
कसम खाकर कहती हूँ आज पगार नहीं दी बाईसा ने.."

रात के सन्नाटे को चीरती हुई किसी बेबस की करुण याचना, जब उन सभी के कानों से टकराई, तो किसी को एक पल गवाना उचित नहीं लगा।
"बस , अब बहुत हो गया...,चलो बहिनों! आज ये सिलसिला हमेशा के लिए खत्म ही कर देते है।" उसकी भारीभरकम एक आवाज पर पूरी की पूरी टोली उठ खड़ी हुई।
फिर उन सब के हाथ थे या हथौड़े, दर्द भरी कराहें निकल गयी। पूरी बस्ती की मौजूदगी के बाबजूद चारों तरफ सन्नाटा पसरा था। इस सन्नाटे को टोली की मुखिया की चेतावनी ने भंग किया।
"आज के बाद ...अगर बस्ती में किसी मर्द ने औरत पर हाथ उठाया या किसी औरत के रोने-चीखने की आवाज़ आयी....,तो नमूना तुम सब देख चुके हो...।"
उनका सब का रौद्र रूप और जमीन पर बेहाल पड़े साथी की हालत देखकर, मर्दानगी पर इतराते मर्दों के पसीने छूट गए।
वहीं टोली अपने चिर-परिचित अंदाज़ में तालियाँ पीटती जैसे आयी थी वैसे ही अंधेरे में गुम हो गयी।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 950

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by surender insan on January 11, 2018 at 4:10pm

बहुत बढ़िया शानदार अभिव्यक्ति । बेहतरीन प्रस्तुति । बधाई स्वीकार करे।

Comment by Mohammed Arif on January 11, 2018 at 1:57pm

आदरणीया राहिला जी आदाब,

                         आज नारी पहले जैसी नारी नहीं रही । वह भली-भाँति अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे मेन जानती है । वह अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ भी उठा रही है जो कि अच्छी बात है । "गुलाबी गेंग"  हमारे सामने इसका बेहतरीन उदाहरण है । हाँ, इतना ज़रूर है कि कहीं-कहीं महिलाएँ अत्याचार सहने पर अभिशप्त है । जब तक नारी अपनी आवाज़ बुलंद नहीं करेंगी तब तक वह अत्याचार सहती रहेगी । आपकी लघुकथा का मूल स्वर भी शायद यही है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 11, 2018 at 12:38pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला आसिफ़ जी।वाह, बेहतरीन लघुकथा।एकदम नया विषय और उतना ही सुंदर प्रस्तुतीकरण।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service