For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कंधों का तनाव(कहानी )

कंधों का तनाव

जो आज हुआ वो अप्रत्याशित था |साढ़े नौ बजे जब में उतरा तो यकीन था कि भोजन आ रहा होगा |बाइक लॉक करके और टी.वी. चलाकर मैं भोजन का इंतजार करने लगा |जिस निशिचिंत्ता से पिताजी सोए थे मुझे यकीन था कि वो खा चुके होंगे |माताजी चूँकि नीचे बैठीं थी इसलिए ये विश्वास था कि या तो वो खा चुकी होंगी या खा रही होंगी |इसी बीच पिताजी ने करवट ली और टी.वी. देखने लगे |मैं निश्चिन्त था कि पिताजी खा चुके होंगे |घड़ी सवा दस बजा चुकी थी और मैं उहापोह में था |सुबह और दोपहर का खाना मेरे लिए नीचे से आया था इसलिए मुझे विश्वास था कि इस वक्त का भोजन भी नीचे से आएगा |मुझे लग रहा थी कि शायद नीचे गर्मागर्म रोटी बन रही हो इसलिए विलम्ब हो रहा है |इस बीच मेरी भूख बहुत बढ़ चुकी थी इसलिए मैंने शाम को मेहमानों को परोसे लड्डूओं में से बचे दो लड्डू गटक लिए थे |साढ़े दस बजे माताजी ऊपर आई और पिताजी की बगल में आकर बैठ गईं |मैं अभी भी उलझन में था भूख के मारे दम निकल रहा था||पर मैं माताजी या पिताजी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था |मुझे डर था कि वो जान ना जाएँ कि मैं अभी तक भूखा हूँ |दस मिनट बाद पिताजी ने माँ से पूछा-खाना खा लिया |

“जैसे तुम खाइ लिए वैसे मैं खाइ ली |”माँ झुंझलाकर बोली

“मतलब !” पापा ने गुस्साते हुए पूछा

“सब लोग हांड़ी-बर्तन पोंछ कर सो गए है |”

“बड़कुउ के ड्यूटी जाने के लिए ताज़ी रोटी बनी थी अपने बबुआ को भी उसी में से दे दी |बाकि लोग सुबह की रोटी सब्ज़ी भात खा कर सो गए |”

“तुम तो नीचे ही थी तुमसे किसी ने नहीं पूछा |”

“हमहि बेशर्म की तरह पूछ लिए कि बहुरिया का आज खाए के ना मिली |”

“तो क्या बोली |” पिताजी ने झल्लाते हुए कहा

“यही कि छुटकउ नहि बना रहे क्या !”

“तो तुम कुछ नहीं बोली |”

“हमने कहा कि तुम्हारे रहते छुटकउ हमारा खाना बनाएगा |”

“फिर !”

“वो तो कुछ नहीं बोली पर जो उनकी बड़की दुलारी है ना वो बोली कि चाचा चाची के रहने पर भी तो बनाते हैं |”

“कल ही हमारी टिकट निकलवा दे |जो लिखा होगा वो होगा पर हम दर-दर के भिखारी नहीं बनेंगे |” पिताजी ने भड़कते हुए कहा

“ये कोई हल नहीं है |ये घर आपका बनाया हुआ है |ऐसे भागने से काम नहीं चलने वाला |अगर वो लोग आपको बोझ समझते हैं तो आप भी एक कड़ा फैसला लो |चाहे इस फैसले की आँच में मैं भी झुलस जाऊँ” मैंने बिगड़ते हुए कहा
“दूध रखा है मैं दलिया बना लेती हूँ |” माँ ने उठते हुए कहा पर मैंने माँ का हाथ पकड़ लिया

“यहाँ रहते हुए आप मेरे या पिताजी के लिए खाना नहीं बनाओगी |मैं अपना खाना बना लूँगा |अगर बड़के भाई का  परिवार आप दोनों का भोजन नहीं खिला सकता तो आप लोग समझिए की आपको क्या करना है |”

“मैं अभी बड़की को बुलाकर पूछता हूँ |” पिताजी ने चेहरा तमतमाते हुए पूछा

“हड़बडी मत करिए ---हो सकता है कुछ बना कर आप लोगों के लिए ले आएँ------नहीं तो सुबह जब भाईसाहब आएँ उनसे पूछिए और जहाँ तक मेरा सवाल है मैं होटल जा रहा हूँ खाने |”

मैं खड़ा होकर कुछ देर टहलता हूँ और विचार-मंथन करता हूँ |मुझ इस बात की कोई शिकायत नहीं है कि मुझे खाना नहीं मिला |शादी के बाद से हम दोनों भाईयों के चूल्हे अलग हैं और हम दोनों पिताजी द्वारा बनवाए मकान के अलग-अलग माले पर रहते हैं |तेरह साल पहले वी.आर.एस. लेने के बाद पिताजी और माँ गाँव चले गए और वहीं पर पिताजी ने मकान बना दिया है और गाँव की सड़क पर एक दुकान ले ली है |शहर के घर और गाँव की दुकान की कीमत ही लगभग 50 लाख से ऊपर है |

|शहर का घर बीस साल से पुराना हो चुका है |पत्थर की छत और ऊपर की मंजिल होने के कारण हर गर्मी में छत पर दरार पड़ जाती है और बरसात में किचन और कमरे चूने लगे हैं जिसकी हर बार मरम्मत करानी पड़ती है |इसके अलावा खुला घर होने के कारण गर्मी में तेज़ धूप,सर्दी में शीतलहर और बरसात में पानी सीधा मुँह पर पड़ता है और पत्नी इस बात पे चिढ़ी रहती है कि घर क्यों नहीं बन रहा |

पिछले तीन सालों से मैं पिताजी से इस समस्या का हल निकालने के लिए कह रहा हूँ |हर बार पिताजी आते हैं,नीचे जाते हैं,भाभी अपना रोना रोती हैं,भाईसाहब पैसे ना होने का हवाला और तीन बेटियों की शादी का हवाला देते हैं और पिताजी अपना सा मुँह लिए कुछ दिनों बाद गाँव लौट जाते हैं |इस बीच मैंने बिल्डर से मकान बनवाने ,खुद मकान बनाकर कर बिल्डर की तरह देने,घर की कीमत लगाकर आधे पैसे लेने या देने के सारे प्रस्ताव दे डाले हैं पर उन लोगों के कानों पर जूँ नहीं रेंग रही |और एक अच्छा घर बनाने की मेरी समस्या जस की तस है |

समय के साथ क्रमशः पिताजी के घुटनों और माँ की कमर ने जवाब दे दिया है |पिछले साल ही मैं माँ को इलाज के लिए अपने साथ ले आया था |पर माँ की बीमारियाँ हैं कि खत्म ही नहीं होती |यद्यपि सरकारी सेवक होने के कारण मुझे निजी अस्पतालों की सुविधा प्राप्त है परंतु अपने विभाग के भ्रष्टाचार और लाल-फीताशाही के कारण मैं यथा संभव विभागीय डिस्पेंसरी व् सरकारी अस्पताल से ही इलाज कराना पसन्द करता हूँ |तथापि माँ के ईलाज की तीन फाईले नौ माह से कैमो ऑफि स से पास होने की प्रतीक्षा कर रही हैं |

बड़े भाई प्राईवेट कर्मचारी हैं और उन्हें ई.एस.आई. की सुविधा प्राप्त है |भीड़-भाड़ होने के बावजूद माँ को कमर दर्द में ई.एस.आई. की दवाई लगती है इसलिए मैंने ये जिम्मेवारी भाई के कंधे पर डाल रखी है जिसे वो शायद पसंद नहीं करते |एकाध बार ये उड़ते हुए भी सुना कि जब मैं गाँव से माँ को लाया हूँ तो खुद ही सारी जिम्मेवारी क्यों नहीं उठाता |माताजी मेरे साथ ही रहती हैं और पिताजी भी जब आते हैं ऊपर ही ठहरते हैं |इस बीच जब कभी मुझे सपत्नी बाहर जाना होता है तो उन लोगों की जिम्मेवारी भाईसाहब पर आ पड़ती है |

ऊपर रहते हुए पिताजी का हमेशा रौब रहता है और उन्हें चाय या खाने में तनिक देरी बर्दाश्त नहीं है |पत्नी से इस बात को लेकर मेरी कई बार बहस भी हो चुकी है और वे कहती है कि तुम और तुम्हारे माँ-बाप स्वार्थी हैं वे कभी मेरी परेशानी नहीं समझने वाले |इस बार भी अकेलेपन,घुटने के दर्द और सर्दी से परेशान होकर पिताजी यहाँ चले आए हैं |

 

“दिसम्बर के अंत में सपरिवार मुझे ससुराल जाना था इसलिए नवम्बर में पिताजी ने जब आने की बात की तो मैंने भी कह दिया कि आप आ जाएँगे तो माँ को साथ मिल जाएगा |वरना अकेले वो परेशान होंगी |”

जब पिताजी आए तो भाभी ने माँ से पूछा कि अपनी मर्ज़ी से आए हैं या बुलवाया गया है |

माँ ने भावावेश में कह दिया कि छुटकउ ने टिकट करा के बुलवाया है |भाभी को ये बात अखर गई |उन्हें लगता है कि इसके पीछे मेरी कोई दुर्भावना है |

मैं कल ही ससुराल से दस दिन बाद लौटा हूँ |जरूरी काम आ जाने से पत्नी को वहीं रुकना पड़ा है |दोपहर तक सब ठीक लग रहा था पर अब कि परिस्थितियों ने मुझे उलझन में डाल दिया है |इसी बीच पिताजी ऊपर से बड़ी भतीजी को आवाज़ लगाते हैं कि खाने में इतनी देरी क्यों |मैं होटल से खाना लेने के लिए चल देता हूँ |

मैं होटल आ गया हूँ और वहीं से पिताजी से फ़ोन पर पूछता हूँ कि खाने के लिए कुछ आया |

“अभी तक तो नहीं |”

“आप लोगों के लिए भी ले आऊँ ?”

“तुम खाकर आ जाओ |”

पर मेरा मन नहीं मनाता और मैं दाल-मखनी और छह रोटी लेकर घर आ जाता हूँ |मैं माँ और पिताजी दोनों से खाने का आग्रह करता हूँ |माँ होटल का खाने से मना कर देती हैं और दो-तीन बार कहने के बाद पिताजी और मैंतीन-तीन रोटी खा लेते हैं |

माँ एक कप दूध पीकर लेट जाती है |

तनाव हम तीनों के चेहरे पर है पर मैं नहीं जानता कि यह तनाव कल सुबह कोई विस्फोट करेगा या हर बार की तरह नीचे जाकर पिताजी फुस्सी बम हो जाएँगे और कल से ऊपर ही मुझे माँ के साथ खाना बनाने में उनकी मदद करनी होगी और एक बार फिर से मेरे कंधों का तनाव बढ़ जाएगा और भाईसाहब हल्का कंधा किए मन ही मन मेरी तात-भक्ति पर मगन होते रहेंगे |

11/01 /2018

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

 

Views: 694

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by somesh kumar on January 15, 2018 at 8:48pm

भाई  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी आप ने कहानी को समय दिया इसके लिए शुक्रिया |आप ने कहानी में कुछ घटनाओं को अस्भाविक कहा है परंतु इसे इंगित नहीं किया जो मेरे लिए उलझन पैदा कर रहा है | मेरा मानना है कि कहानियाँ जीवन का स्वरूप होती हैं| मैं कोशिश करता हूँ कि जगबीती को आपबीती बनाकर प्रस्तुत करूं |इसके लिए मैं पात्रों से संवाद करता हूँ और उनके मनोभावों को smjhte हुए प्रस्तुत करता हूँ |कई बार कलात्मकता के कारण शायद विफल भी होता हूँ |ये एक सीखने-सिखाने का मंच है | हो सके तो विस्तृत मार्गदर्शन दें |

आपका अनुज 

Comment by somesh kumar on January 15, 2018 at 8:37pm

कहानी को समय देने एवं मार्गदर्शन के लिए आ.  Ajay Tiwari जी आभार |इस कहानी को अभी और बढ़ाने की कोशिश है अगर ऐसा कर सका तो सुझाए गए बदलावों पर भी अमल करूँगा |

आ.Samar kabeer जी आपका आशीष बना हुआ है और ये मेरी प्रेणना का स्रोत है इसे बनाए रखिएगा |

Comment by नाथ सोनांचली on January 15, 2018 at 6:16am

आद0सोमेश जी सादर अभिवादन। अच्छी कहानी लगी, कही कहीं कुछ घटनाएं अस्वाभाविक भी प्रतीत हुईं। बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर।सादर

Comment by Samar kabeer on January 14, 2018 at 12:29pm

जनाब सोमेश जी आदाब,अच्छी लगी आपकी कहानी,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ajay Tiwari on January 13, 2018 at 6:53pm

आदरणीय सोमेश जी, बहुत अच्छी कहानी है.  

'इसी बीच पिताजी ऊपर से बड़ी भतीजी को आवाज़ लगाते हैं' जैसा भाषा प्रयोग थोड़ा पुराने तरह का लगता है जिससे बचा जा सकता है.

सादर   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
2 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service