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नई रुत का अभी तूफ़ान बाक़ी है... ग़ज़ल- बलराम धाकड़

१२२२,१२२२,१२२२

नई रुत का अभी तूफ़ान बाकी है।
निज़ामत का नया उन्वान बाकी है।

निवाले छीनकर ख़ुश हो मेरे आका,
अभी अपना ये दस्तरख़ान बाकी है।

अभी टूटा नहीं है सब्र का पुल भी,
ज़रा सा और इत्मीनान बाकी है।

अभी थोड़ी सी घाटी ही तो खोई है,
अभी तो सारा हिन्दुस्तान बाकी है।

हथेली पर तुम्हारी रख तो दीं आँखें,
हमारे पास सुरमेदान बाकी है।

कयामत के बचे होंगे महीने कुछ,
अभी इंसान में इंसान बाकी है।

करोगे इसपे कब यलगार, ऐ हातिम,
उम्मीदों का जो कब्रिस्तान बाकी है।

पियादों की ये आहों का तक़ाज़ा था,
वज़ारत पिट गई सुल्तान बाकी है।

खड़ी आवाम है घुटनों के बल साहब,
कहें, अब और क्या फ़रमान बाकी है।

दिमागों पर है पहरा, बज़्न है दिल पर,
हिमालय से बड़ी चट्टान बाकी है।

सच्चाई की हुई नीलाम इज़्ज़त अब,
सहमता सा खड़ा ईमान बाकी है।

निचोड़ो और थोड़ा ख़ूँ कलेजे से,
बदन में और थोड़ी जान बाकी है।

मौलिक/अप्रकाशित
- बलराम धाकड़

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Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:45pm
भाई बलराम जी,
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारक़बाद कुबूल फरमाएं.
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 24, 2018 at 9:12pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बलराम धाकड़ जी

Comment by Balram Dhakar on January 24, 2018 at 9:56am

धन्यवाद, आदरणीय बसंत जी।
सादर।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on January 24, 2018 at 9:54am

उम्दा गजल हुई है आदरणीय बलराम धाकड़ जी, वाह 

Comment by Balram Dhakar on January 24, 2018 at 9:36am

आदरणीय आरिफ़ सा०,ग़ज़ल में शिरक़त, सुखन नवाज़ी और हौसला अफ़जाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
सादर।

Comment by Mohammed Arif on January 24, 2018 at 7:41am

आदरणीय बलराम धाकड़ जी आदाब,

                                    बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । हर शे'र माकूल और अपनी तीव्रता का एक हसास कराता हुआ । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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