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ग़ज़ल " ग़मो का इक समंदर टूटता है।"

1222 1222 122

ग़मो का इक समंदर टूटता है।
किसी का भी अगर घर टूटता है।।

मिले धोख़े पे धोख़ा जब किसी को।
तो वो अंदर ही अंदर टूटता है।।

सँभलता मुश्किलों से आदमी फिर।
भरोसा जब कहीं पर टूटता है।।

करो कोशिश भले तुम लाख यारो।
न आईने से पत्थर टूटता है।।

उजड़ते है परिंदों के कई घर।
कभी कोई भी खण्डहर टूटता है।।

यही तक़दीर में शायद लिखा हो।
जो देखूं ख़्वाब अक्सर टूटता है।।

ग़ज़ल को जब नहीं मिलती तवज़्ज़ो।
तभी कोई सुख़नवर टूटता है।।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by surender insan on February 4, 2018 at 12:40pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, आदरणीय बृजेश कुमार जी, आदरणीय शेेेख शहजाद उस्मानी, आदरणीय सालिम रााजा रेवा जी, आदरणीय  विजय निकोर जी, आदरणीय सतविंद्र  भाई जी, आदरणीय अमोदजी, आदरणीय महेंद्र कुमार जी और आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी गज़ल में शिरकत करने और हौसला   अफ़जाई के लिए बहुत बहुुुत  आभार  जी। 

सभी को सादर नमन जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2018 at 8:27am

भाई सुरेन्द्र जी , ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 26, 2018 at 4:33pm

वाह आदरणीय क्या खूब ग़ज़ल कही...शानदार

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 26, 2018 at 6:00am

सच्ची बात। बहुत बढ़िया पेशकश के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र इंसान जी।

Comment by vijay nikore on January 25, 2018 at 1:21pm

गज़ल में भाव बहुत अच्छे चुने हैं। हार्दिक बधाई।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:42pm
भाई सुरेन्द्र जी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 24, 2018 at 9:00pm

उम्दा अशआर कहे हैं। हार्दिक बधाई आ सुरेन्द्र भाई

Comment by amod shrivastav (bindouri) on January 24, 2018 at 8:45pm

Wahhh बहुत उम्दा भाई। सादर बधाई

Comment by Mahendra Kumar on January 24, 2018 at 7:22pm

बढ़िया ग़ज़ल कही है आ. सुरेन्द्र जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Mohammed Arif on January 24, 2018 at 5:03pm

आदरणीय सुरेंद्र जी आदाब,

               बहुत  दर्द उकेरा आपने अच्छे अश'आरों में । हार्दिक  बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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