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इश्क कुछ इस तरह निबाह करो/ ग़ज़ल

इश्क कुछ इस तरह निबाह करो ।
तुम मुझे और भी तबाह करो ।

तोड़ दो दिल तो कोई बात नहीं,
टूटे दिल मे मगर पनाह करो ।

मै अगर कुछ नहीं तुम्हारा हूँ,
दर्द पर मेरे तुम न आह करो ।

चाहना तुमको मेरी फितरत है,
तुम भले ही न मेरी चाह करो ।

तुम सजा पर सजा सुना दो पर,
मत कहो मुझसे मत गुनाह करो ।

आज कुछ यूँ मुझे सताओ तुम,
ग़ज़ल पर मेरी वाह वाह करो ।

नीरज मिश्रा
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Neeraj Nishchal on February 18, 2018 at 2:00am

आदरणीय राम अवध जी बहुमूल्य जानकारी देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by Neeraj Nishchal on February 18, 2018 at 1:59am

बहुत बहुत हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on February 15, 2018 at 1:35pm

आदरणीय नीरज मिश्रा जी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई। मतला में कफिया तबाह और निबाह बाँधने पर आगे काफिया पनाह आह नहीं आयेगा। आगे भी ऐसे काफिये आयेंगे जिसमे अन्त में बाह आये। यहाँ   कैदेहर्फी का दोष है। ग़ज़ल शब्द भी मिसरे को बह्र से खा़रिज़ कर रहा है। ऐसा मेरे विचार से है लेकिन गुणीजन ही अपनी सही.राय देंगे। सादर

Comment by Mohammed Arif on February 15, 2018 at 10:21am

आदरणीय नीरज जी आदाब,

                            बहुत उम्दा ग़ज़ल । आपने ग़ज़ल के अर्कान नहीं लिखें । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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