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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार बयासीवाँ आयोजन है.   

 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

16 फ़रवरी 2018 दिन शुक्रवार से 17 फ़रवरी 2018 दिन शनिवार तक


इस बार पुनः छंदों की पुनरावृति हो रही है - 

शक्ति छंद और भुजंगप्रयात छंद  

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.  छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है,  चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

साथ ही, रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो छन्द बदल दें.

[प्रस्तुत चित्र अंतर्जाल से]

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

शक्ति छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

भुजंगप्रयात छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 16 फ़रवरी 2018 दिन शुक्रवार से 17 फ़रवरी 2018 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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विशेष :

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

गुनगुनाने योग्य बढ़िया पेशकश के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. छोटे लाल सिंह जी।

बधाई बधाई बधाई कहें
सभी छंद अच्छे यहां जो रहें
जरा व्याकरण का अगर ध्यान हो
बड़ा छंद का फिर बढ़ा मान हो।
सआदर

भुजंग प्रयात छन्द (122 -122-122-122)

सदा भोर  में माँ मुझे  है  जगाती
नहाना  बड़ा  लाभ  देता  बताती
अगर शीत जल हो उसे है तपाती
बड़े  लाड़ से तब खुले में बिठाती

बड़े प्यार से बोल कर वो दुलारा
उढ़ेला करे  शीश  पर  नीर धारा
मले खूब  शैम्पू  बना झाग न्यारा
हुआ साफ तन ये सदा मैल हारा

कभी चाहता  गर  नहीं मैं नहाना
बनाता नया ढूँढ  कर जब बहाना
मगर जानती माँ सहज ही मनाना
डपटना पड़े  गीत  या  गुनगुनाना

कभी क्रोध नकली दिखाती बहुत है
पिता हों न  हों पर  बुलाती बहुत है
मनाने  मुझे   गीत  गाती  बहुत  है
खनक चूड़ियों की सुहाती बहुत है

मौलिक-अप्रकाशित

जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब ,प्रदत्त चित्र पर भुजंग प्रयात छन्द के द्वारा सुन्दर प्रयास हुआ है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । मात्राओं की त्रुटि जो पहली बार मुझ से हुई वही शायद आपसे हो गई ।

छन्द1--अगर 12(111),जल 2(11),तब 2(11),

छन्द2-कर2(11),पर2(11),तन2(11),

छन्द3--गर2(11),कर 2(11),जब2(11),मगर12(111),सहज12(111),डपटना 122(1112),गुन 2(11) 

छन्द4--नक़ली 22(112),बहुत 12(111),पर 2(11),खनक 12(111)--

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार ।

संशोधन इस प्रकार किया है प्रतिक्रिया दें -

सदा भोर  में माँ मुझे  है  जगाती
नहाना  बड़ा  लाभ  देता  बताती
अगर शीत  हो नीर तो  है तपाती
बड़े  लाड़ से है  खुले में बिठाती

जता प्यार जादा बुलाती  दुलारा
उढ़ेले  तभी  शीश  पे  नीर धारा
मले खूब  शैम्पू  बना झाग न्यारा
करे  साफ  काया हटा  मैल सारा

कभी चाहता  जो  नहीं मैं नहाना
नया  ढूँढता  हूँ   बड़ा  मैं  बहाना
भले जानती माँ कि कैसे मनाना
पड़े  डाँटना  या  पड़े गीत  गाना

कभी क्रोध झूठा  दिखाती भले वो
पिता हों  न  चाहे  बुलाती भले वो
बहाने  सभी  जान जाती  भले वो
डराने  छड़ी  भी  उठाती  भले वो

मनाने  कभी  गीत  गाती  बड़ा है
कभी पोंछ आँसू चिढ़ाती बड़ा  है
बजा चूड़ियों को हँसाती  बड़ा  है
अदा ये मुझे  भी  सुहाती बड़ा  है

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपकी रचना चित्रानुरूप उम्दा भाव को समेटे बहुत ही बेहतरीन हैं दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए

आ. भाई छोटलाल जी, रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए  हार्दिक धन्यवाद ।

जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब ,मेरे कहे को मान देने का शुक्रिया ,मैं भी अभ्यासी हूं ,आप की तरह ,आपमें गज़ब की छमता है ।छन्द1 में देखें ---अगर --12(111) ,बाक़ी सही लग रहा है ।

फिर चूक हो गई ...

आदरणीय लक्ष्मण जी चित्र पर सुन्दर छंद रचना, हार्दिक बधाई

आ. प्रतिभा बहन, प्रशंसा के लिए आभार ।

आदरणीय लक्ष्मण  भाईजी

भुजंग प्रयात छंद में आपकी प्रस्तुति मोहक है। मेरी हार्दिक बधाई।

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