For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हारे इश्क ने मुझको क्या क्या बना दिया ...

तुम्हारे इश्क ने मुझको,
क्या क्या बना दिया...
कभी आशिक,कभी पागल-
कभी शायर बना दिया।।

अब इतने नाम हैं मेरे,
कि मैं खुद भूल जाता हूँ...
कोई कुछ भी पुकारे मुझको-
मैं बस मुस्कुराता हूँ।।

मेरी माँ कहती है मुझसे,
दिवाना हो गया है तू....
मगर इक तू ही न समझे-
कि मैं तेरा दिवाना हूँ।।

अगर तुझको भी है चाहत,
तो क्यों इनकार करती है?
तेरी आँखों से लगता है-
कि तू भी प्यार करती है।।

खुदा की है रज़ा इसमें,
कि जो तुझसे मिला दिया...
तुम्हारे इश्क ने मुझको,
क्या क्या बना दिया....

कभी आशिक, कभी पागल-
कभी शायर बना दिया।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 575

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रक्षिता सिंह on February 20, 2018 at 6:06am

आदरणीय नादिर जी, बहुत बहुत आभार।

आपके द्वारा बताई त्रुटी को मैं शीघ्र ही सुधार लेती हूँ।

Comment by नादिर ख़ान on February 19, 2018 at 4:52pm

अगर तुझको भी है चाँहत,
तो क्यों इनकार करती है?
तेरी आँखों से लगता है-
कि तू भी प्यार करती है।।   चाँहत को चाहत कर लीजिये .....

सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें  ...

Comment by रक्षिता सिंह on February 19, 2018 at 1:56pm

आदरणीय नीरज जी, बहुत बहुत आभार।

Comment by Neeraj Nishchal on February 19, 2018 at 9:46am

बहुत ही उम्दा संवेदनाएं उम्दा रचना आदरणीया रक्षिता जी

Comment by रक्षिता सिंह on February 18, 2018 at 11:29pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी बहुत बहुत धन्यबाद।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2018 at 11:26pm

रुमानियत को समेटे हुए सुन्दर रचना...

Comment by रक्षिता सिंह on February 18, 2018 at 10:43pm

आदरणीय आरिफ जी, बहुत बहुत आभार।

लेखन सार्थक हुआ।

Comment by Mohammed Arif on February 18, 2018 at 9:39pm

आदरणीया रक्षिता सिंह जी आदाब,

                             इश्क़ के रंग में शिद्दत से डूबी बहुत ही प्यारी रचना । सच है इश्क़ ही इस संसार में शाश्वत है वह चाहे जो करवा सकता । शाहजहाँ से ताज महल बनवा सकता है तो भगवत माँझी से पहाड़ भी खुदवाकर रास्ता बनवा सकता है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, ख़ूब ग़ज़ल रही, बधाई आपको। "
1 minute ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी। सादर अभिवादन स्वीकार करें। ग़ज़ल तक आने व प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार"
20 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Sanjay जी, अच्छा प्रयास रहा, बधाई आपको।"
22 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Aazi ji, अच्छी ग़ज़ल रही, बधाई।  सुझाव भी ख़ूब। ग़ज़ल में निखार आएगा। "
28 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकारें बाक़ी गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
40 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Mahendra Kumar ji, अच्छी ग़ज़ल रही। बधाई आपको।"
42 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Euphonic Amit जी, ख़ूब ग़ज़ल हुई, बधाई आपको।  "आप के तसव्वुर में एक बार खो जाए फिर क़लम…"
47 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
52 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें भाई चारा का सही वज्न 2122 या 2222 है ? "
54 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें सातवाँ थोड़ा मरम्मत चाहता है"
58 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत ख़ूब। समझदार को इशारा काफ़ी। आप अच्छा लिखते हैं और जल्दी सीखते हैं। शुभकामनाएँ"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service