For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लोकशाही क़माल है साहिब
लोक में ही बवाल है साहिब

काम इनके कभी नहीं रुकते
कौन इनका दलाल है साहिब

फिर से मिलने लगे हैं झुक झुक के
खेल करने का साल है साहिब

पूछने पर हमेशा कहते हैं
नेक सा ही ख़्याल है साहिब

अनगिनत हैं सवाल आंखों में
दिल में थोड़ा मलाल है साहिब

- -नंद कुमार सनमुखानी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 560

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2018 at 9:41am

आ. नन्द कुमार जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 12:38pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. नन्द कुमार जी 
बधाई ..
तीसरे शेर में ऊला और सानी में रब्त कम लग रहा है .. झुकने और खेल करने में कोई सम्बन्ध नहीं मिल पा रहा है ..
अंतिम शेर अच्छा बन पडा है..
बधाई 

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 25, 2018 at 10:43am
जनाब Tasdiq Ahmed Khan साहब,
मशकूर हूं कि आपने ग़ज़ल पर अपनी राय देकर मेरी हौसला अफ़ज़ाई की है।
मेहरबानी आपकी...
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 24, 2018 at 9:42pm

जनाब नन्द सन मुखानी साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 24, 2018 at 5:23pm
आली जनाब Samar Kabeer साहब,
ग़ज़ल कहने के इल्म से अभी मैं पूरी तरह वाक़िफ़ नहीं हूं। अभी तो इस राह पर मैने चलना शुरू ही किया है। इस लिए ग़ज़ल को ख़ूबसूरत कैसे बनाया जाता है, इसके लिए कौन-कौन से तरीक़े इख़्तियार किये जाते हैं आदि जैसी बातों से लगभग पूरी तरह नावाक़िफ़ हूं।
मेरा यह समूह ज्वॉइन करने का मक़सद भी यही है कि आप जैसे आलिमों के सामने जब अपनी कोशिश रखूंगा तब उसमें रह जाने वाली ग़ल्तियों/कमियों की निशानदेही होगी और उन्हें ठीक करने के मशविरे भी मिलेंगे, जिससे मैं ज़रूर कुछ सीख पाऊंगा ।
Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 24, 2018 at 5:03pm
जनाब Samar Kabeer साहब, आदाब अर्ज़ है।
आपको मेरी छोटी सी कोशिश पसंद आई, यह मेरे लिए इंतहाई ख़ुशी की बात है। तहेदिल से आपका शुक्रगुज़ार हूं।
Comment by Samar kabeer on April 24, 2018 at 3:29pm

जनाब नंद कुमार साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

पूरी ग़ज़ल में सारा बोझ क़वाफ़ी पर है, जबकि ग़ज़ल की ख़ूबी इसे कहते हैं कि क़वाफ़ी पर बोझ न हो ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
45 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
15 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service