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ग़ज़ल नूर की - आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को

आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को
खैर जो भी हो, मुहब्बत से निभाना मुझ को.
.
जीत कर मुझ से, मुझे जीत नहीं पाओगे
हार कर ख़ुद को है आसान हराना मुझ को.
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मैं भी लुट जाने को तैयार मिलूँगा हर दम
शर्त इतनी है कि समझें वो ख़ज़ाना मुझ को.
.
आप मिलियेगा नए ढब से मुझे रोज़ अगर
मेरा वादा है न पाओगे पुराना मुझ को.
.
ओढ़ लेना मुझे सर्दी हो अगर रातों में
हो गुलाबी सी अगर ठण्ड, बिछाना मुझ को.
.
मुख़्तसर है ये तमन्ना कि अगर जाँ निकले
आप की गोद का मिल जाए सिरहाना मुझ को.
.
कर सराबोर मुझे मुझ में बरस कर ऐ ‘नूर’
अपनी बस्ती में कहीं दे दे ठिकाना मुझ को
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 912

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on June 10, 2018 at 1:41pm

वाह आदरणीय नूर जी उम्दा गजल कही आपने. हार्दिक बधाई 

Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on June 10, 2018 at 7:48am
Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 4, 2018 at 7:21pm

शुक्रिया आ. बसंत जी 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2018 at 10:19am

वाह वाह लाजबाब गजल हुई है,मुग्ध हूँ , बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2018 at 11:26am

आभार आ. समर सर 

Comment by Samar kabeer on May 4, 2018 at 11:20am

बधाई हो निलेश जी ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2018 at 11:00am


मेरी ग़ज़ल को फीचर्ड blogs में शामिल करने के लिए शुक्रिया आ. प्रधान सम्पादक जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2018 at 11:01am

धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2018 at 11:01am

धन्यवाद आ. तेजवीर सिंह जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2018 at 6:14pm

आ. भाई नीलेश जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

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