For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इनआर्बिट माल से सागर ने आफिस के लिए फॉर्मल ड्रेसेस तो खरीद लीं थीं। अभी और ज़रूरी परचेसिंग बाकी थी। तभी अनायास उसकी नज़र एक टॉय सेन्टर पर पड़ी। बड़े से हाल में, एक रिमोट कंट्रोल्ड एयरोप्लेन गोल- गोल चक्कर लगा रहा था। उसे देखते ही सागर को अपना बचपन याद आ गया। अपने होमटाउन के सिटिमार्केट से गुज़रते वक़्त ऐसे ही एक खिलौने की दुकान से उसने चाबी से चलने वाले हवाई जहाज़ को खरीदने की ज़िद की थी और अपनी ज़िद पूरी करवाने के लिए मचल भी गया था। पापा ने शुरू में तो कठोरता से डाँटा फिर प्यार से महीने के आखिरी तारीखों के कारण खरीद पाने में असमर्थता व्यक्त की थी।इसके बाद तो कभी किसी चीज़ के लिए जिद करने की इच्छा ही नहीं हुई। एक अजीब सा सब्र घर कर चुका था उसके अंदर। आज तो हिम्मत करके प्राइज़ भी पूँछ ही लिया।

पूरे 800 रु।

अरे, बहुत महँगा है।

अपना सिटी वाला तो उस समय मात्र 100 रु का ही था।

अब 20 वर्ष भी तो गुज़र गए हैं।

मन ही मन सोचने लगा।

उसका दिल तो कर रहा था, तुरंत खरीद ले। लेकिन फिर पापा का चेहरा सामने आ गया।
"जैसे बोल रहे हों बहुत महंगा है, बेटा।"

डर लग रहा था, अब कहीं फिर कुछ समझाने न लग जाएं।
फिर भी खरीदने के पहले एक बार कॉल करके पूछ तो लूँ ही।

हेलो पापा,

हाँ बेटे,

पापा, मॉल की एक शॉप पर एक हवाई जहाज़ मिल रहा है। असली का नहीं, वही टॉय वाला।

लेकिन महंगा बहुत है। खरीद लूँ क्या ?

कितने का है, बेटे ?

800 रु का।

हाँ, बेटे। अगर तुम्हें पसंद है तो खरीद लो।

"अरे,... ... ...

पापा ने तो हाँ कर दी। वो भी बिना कुछ तर्क वितर्क दिए।”

उन्हें पता है, "कॉलेज केम्पस के बाद मेरे प्लेसमेन्ट की पहली सैलरी मिली है न मुझे, पूरे एक लाख रु।

कहीं पापा को मेरे बचपन की हवाई जहाज़ खरीदने के लिए मचल जाने वाली घटना तो नहीं याद आ
गई।”

परन्तु, आज पापा ... ?

हाँ, लगता है आज पापा बहुत खुश हैं और ... ... ...

और ...

"असमर्थता व्यक्त करने में गौरव महसूस कर रहे हैं।
( मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 548

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 26, 2018 at 4:13pm

आदरणीय मुजफ्फर जी पिता के लिए वाकई बेहद सुखद होता है ऐसा पल ..आदरणीय तेजवीर जी का सवाल मेरे लिए भी एक सवाल है सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 24, 2018 at 11:40pm

adaab. badhaayi muzaffer bhai. the last ls the most impressive , effective punchline . told and untold messages in it. father is unable but son is now capable due to good salary.  so  proud expressed.

Comment by Samar kabeer on July 24, 2018 at 11:54am

जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा हुई,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

जनाब तेजवीर सिंह जी का उठाया प्रश्न मेरे दिमाग़ में भी है?

Comment by TEJ VEER SINGH on July 23, 2018 at 3:57pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मुजफ़्फ़र इक़बाल सिद्दिक़ी जी। बेहतरीन लघुकथा। मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है। जब पिता ने जहाज खरीदने की अनुमति दे दी तो फिर आपने अंतिम पंक्ति में यह क्यों लिखा।"असमर्थता व्यक्त करने में गौरव महसूस कर रहे हैं"।

Comment by babitagupta on July 23, 2018 at 1:54pm

कभी कभी माता पिता की विवशता  बच्चों की इच्छा पूरी ना करने के कारण घर कर जाती हैं,वो टीस कितने भी बड़े हो जाए,मन के किसी कोने छिपी रहती हैं, लेकिन वो वो जीवन की सीख होती हैं। बेहतरीन लघु कथा द्वारा बचपन की छुटपुट यादों को दिलाना।हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
18 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service