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१२२२,१२२२,१२२२,१२२२ 

अता.........करदी

हमारेही मुक़द्दर में जुदाई क्यों अता करदी०
ज़रा इतना तो बतलाओ,कि ऐसी क्या खता करदी ।०

मेरी खामोशियोंको, नाम रुसवाई दिया तुमने०
कहाँ कुछ हम थे बोले, बात ऐसी, क्या, बता करदी । ०

कहाँ माँगी कहो जन्नत , ज़माने भर की दौलत भी०
मेरी तक़दीरसे, ख़ुशियाँ सभी क्यों लापता करदीं ।०

पढी बस इक ग़ज़ल हमने,कभी यारोंकी महेफिल में ०
तुम्हारा ज़िक्र क्या आया,खुदा या दासताँ करदी ।०

तुम्हारी राह पर आँखें बिछायें हम खड़े अबतक०
हमें ये देखना, आते हो तुम की या कता करदी ।।”०

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Kishorekant on August 1, 2018 at 6:50pm

आपके अमूल्य मार्गदर्शन के लिये मेरा धन्यवाद स्विकार करें ।आगेभ आपका सहयोग अपेक्षित !

सादर 

Comment by Samar kabeer on August 1, 2018 at 5:09pm

एक बात ये कि शब्द पूरा होने पर स्पेस दिया करें ,जैसे 'हमारेही'--"हमारे ही"-

'ख़ामोशियोंको'--"ख़ामोशियों को" वग़ैरह ।

Comment by Samar kabeer on August 1, 2018 at 2:57pm

जनाब किशोर एकांत जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

चूँकि ग़ज़ल के क़वाफ़ी मतला तय करता है,इसलिये पहले मतले पर ही बात करते हैं ।

आपने मतले में जो क़वाफ़ी लिए हैं 'अता' और 'ख़ता' आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ये उर्दू में 'तोय' अक्षर के क़वाफ़ी हैं, जबकि आगे के अशआर में 'त' के क़वाफ़ी लिए गए हैं जो मतले की वजह से ग़लत हो रहे हैं,आपको चाहिए कि इस ग़ज़ल में 'आ'स्वरांत क़वाफ़ी लें,इसके लिए मतले के एक मिसरे में क़ाफ़िया बदलने से काम हो जायेगा,मतले का ऊला मिसरा यूँ कर लें:-

'हमारे ही मुक़द्दर में जुदाई क्यों सज़ा कर दी'

//मेरी तक़दीरसे, ख़ुशियाँ सभी क्यों लापता करदीं //

इस मिसरे में रदीफ़ बदल गई है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'मेरी तक़दीर से हर इक ख़ुशी क्यों लापता कर दी'

// तुम्हारा ज़िक्र क्या आया,खुदा या दासताँ करदी//

इस मिसरे में क़ाफ़िया दोष है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'तुम्हारा ज़िक्र क्या आया,क़यामत इक बपा कर दी'

//हमें ये देखना, आते हो तुम की या कता करदी //

इस मिसरे में भी क़ाफ़िया दोष है,इस मिसरे को बदलकर यूँ करना होगा:-

'मगर तुमने तो जानाँ भूलने की इन्तिहा कर दी'

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by vijay nikore on August 1, 2018 at 2:29pm

//तुम्हारी राह पर आँखें बिछायें हम खड़े अबतक०
हमें ये देखना, आते हो तुम की या कता करदी ।।//

वाह ! 

आपकी गज़ल अच्छी लगी। हार्दिक बधाई,  किशोर कांत जी।

Comment by Kishorekant on July 31, 2018 at 9:40pm

आदरणीय अमरमणि जी, आपकी प्रेरणादायी टिप्पणी के लिये बहुत धन्यवाद ।

गुणीजनों के मार्गदर्शन के लिये आतुर हूँ ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 31, 2018 at 9:34pm

आ0  किशोर कांत  साहब बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई । मझे हर शेर अच्छे लगे । बाकी गुण दोष ग़ज़ल के विद्वान् देझेंगे । मेरी ओर से हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 31, 2018 at 8:49pm

हार्दिक बधाई आदरणीय किशोर कांत जी।बेहतरीन गज़ल।

Comment by Kishorekant on July 31, 2018 at 5:49pm

आपका बहुत बहुत आभार श्री श्याम नारायण वर्मा जी ।

कृपा बनाये रक्खें, 

सादर ।

Comment by Kishorekant on July 31, 2018 at 5:16pm

आदरणीय  वसंतकुमार शर्माजी, ग़ज़ल पसंद करनेकी धन्यवाद ।दास्ताँ पर मैं भी दुविधामें हूँ।मुझे योग्य विकल्प नहीं मिला इसलिये धृष्टता की है ?

मंचसे मार्गदर्शन चाहूँगा ।

सादर ।

Comment by Shyam Narain Verma on July 31, 2018 at 5:16pm
बहुत ही सुन्दर ,  हार्दिक बधाई आपको ………….. सादर 

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