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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार अट्ठासीवाँ आयोजन है.   

 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

18 अगस्त 2018 दिन शनिवार से 19 अगस्त 2018 दिन रविवार तक

(शनिवार एवं रविवार की तिथि सदस्यों के अनुरोध पर)
 
इस बार के छंद हैं - 

ताटंक छंद और कुण्डलिया छंद  

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.  छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है,  चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

साथ ही, रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो छन्द बदल दें.   

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

ताटंक छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

कुण्डलिया छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  18 अगस्त 2018 दिन शनिवार से 19 अगस्त 2018 दिन रविवार तक यानी दो दिनों के लिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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विशेष :

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय लक्ष्मण भाई

छंदों की उत्साहवर्धक प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।

आदरणीय अखिलेश जी दोनों ही छंद उत्तम कहे हैं। हार्दिक बधाई

आदरणीय सतविन्द्र भाई

छंदों की उत्साहवर्धक प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।

कुण्डलिया

बढ़ती नदी उफान पर,झंखे ये तकदीर

साफ गरीबी झलकती,दर्शाती तस्वीर

दर्शाती तस्वीर,एक बैठा ले छाता

धोती कम्बल नार,दिखे आपस का नाता

छाता से दे छाँव, नदी बारिश में चढ़ती

कहीं मिले ना ठाँव,गरीबी दिन दिन बढ़ती ll

टब पत्थर पर है पड़ा, बाल्टी वहीं किनार

पीछे स्लीपर दिख रहा,तीव्र नदी की धार

तीव्र नदी की धार,किये सब मुख हैं नीचे

रगड़ रगड़ के वस्त्र ,नार फुर्ती से फीचे

हाय विधाता आज ,गरीबी जाएगी कब

नर नारी हैं बीच,बगल में छोटा सा टब ll

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणीय छोटेलाल भाई

दोनों छंदों में चित्र के सभी पहलुओं का सुंदर चित्रण किया है, हार्दिक बधाई।

झंखे  ? अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया

आदरणीय अखिलेश जी उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार ,आपदा में साधन संपन्न की अपेक्षा गरीबों की तकदीर  तरस जाती है कुछ इसी भाव में प्रयास किया ,आपका पुनः आभार 

जनाब डॉक्टर छोटे लाल साहिब , प्रदत्त विषय पर सुंदर कुण्डली हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब 

  अपने सीमित  साधनों के साथ  तीर्थ नहाने निकले   दंपत्ति का चित्र बहुत सुन्दर खींचा है आपने।  आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी  हार्दिक बधाई आपको ।   झँखे / शायद ये झांके है  टंकण त्रुटि है शायद। 

धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा जी सादर

आदरणीय डॉ. छोटेलाल सिंह जी सादर, प्रदत्त चित्र पर दोनों ही कुण्डलिया छंद आपने बहुत सुंदर रचे हैं. मात्रिक शिल्प तो बहुत ही सुंदर बन पडा है. किन्तु कहन कुछ कमजोर लग रही है. दो शब्द भी मेरे लिए नए हैं 'झंखे' और 'फीचे' 

छाता/छाते से/की  दे छाँव ... फिर इसके साथ /नदी बारिश में चढ़ती/ लिखे जाने से इस पंक्ति का अर्थ निकालना ही मुश्किल हो गया है. दूसरा छंद अधिक बेहतर हुआ है किन्तु इसकी भी एक पंक्ति //हाय विधाता आज, गरीबी जायेगी कब// ....देखें.

फिरभी यह उत्तम प्रयास है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर. 

आदरणीय रक्ताले साहब सादर अभिवादन आपके मार्गदर्शन से नई ऊर्जा मिली हम आपके उत्साह वर्धन से बहुत प्रसन्न हैं सादर नमन आपको

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