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औक़ात - लघुकथा –

"सलमा, यह किसके बच्चे को लेकर जा रही हो"।

"चचाजान, आप पहचान नहीं पाये इन्हें, अपने अर्जुन हैं"।

"अरे वाह, बहुत बड़े हो गये। पर इनको यह क्या पोशाक डाल रखी है"।

"इनको एक सीरियल में कान्हा का किरदार करना है। उसी के लिये लेकर जा रही हूँ"।

"बहुत खूब, संभल कर जाना"।

अभी सलमा चार क़दम ही चली थी कि एक कट्टरपंथी ग्रुप ने उसे घेर लिया। उसे बच्चा चोर बताकर पुलिस थाने ले गये।

 "दरोगा जी,बड़ा तगड़ा केस लाये  हैं,आज तो आपके दोनों हाथों में लड्डू हैं"।

दरोगा जी ने प्रति उत्तर में अपनी पान के रंग से सनी बत्तीसी दिखा दी।

दरोगा जी  बहुत ही अड़ियल किस्म के इंसान थे। सलमा की कोई बात सुनने को राजी ही नहीं थे। उल्टे सीधे सवाल दाग रहे थे। कोई फोन भी नहीं करने दे रहे थे। सलमा को बड़ी ही ललचायी नज़रों से ताक़ रहे थे।

जैसे ही थाने से भीड़ भाड़ निकली, दरोगा जी औक़ात पर आ गये। सलमा के साथ सीधे सीधे सौदेबाजी पर उतर आये।

"देखिये, मैं एक विधवा औरत हूँ। मेरे लिये यह सब सोचना भी गुनाह है"।

"तो फिर कोर्ट कचहरी और वकीलों के चक्कर काटती रहना। वहाँ तो और भी बड़े समझौते करने पड़ेंगे"।

उधर जब सलमा बच्चे के साथ सैट पर शूटिंग के लिये नहीं पहुंची तो यूनिट वालों ने सलमा के घर फोन किया।

कुछ ही देर में एक फ़ौज़ी जीप थाने पहुँची। फ़ौज़ी अधिकारी ने थानेदार को बताया कि ये शहीद मेजर  विजय सिंह की विधवा हैं। इन लोगों ने कोर्ट मेरिज की थी।

 दरोगा जी की नज़रें अभी भी सलमा के इर्द गिर्द ही घूम रही थीं।

"मैडम, मेरे मन में एक सवाल घूम रहा है"।

"आपके मन की ये मुराद भी पूरी कर लीजिये। मन हल्का हो जायेगा"।

"आपने एक हिंदू फ़ौज़ी अफ़सर से शादी कर ली तो फिर यह बुर्का क्यों नहीं छोड़ा"?

"छोड़ दिया था दरोगा जी। लेकिन पति की शहादत के बाद फिर अपनाना पड़ा"।

“क्या फिर अपने धर्म में वापस जाने के लिये"।

"नहीं ज़नाब, यह तो मुमकिन ही नहीं है"।

"तो फिर क्या वज़ह थी"।

"आप जैसे भेड़ियों की गंदी नज़रों से एक विधवा औरत की आबरू बचाने के लिये"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on September 8, 2018 at 2:59pm

हार्दिक आभार आदरणीय आशीष यादव जी।

Comment by आशीष यादव on September 8, 2018 at 1:12pm

सामयिक, यथार्थ और औकात दिखाती हुई कहानी।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 7, 2018 at 8:24pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 7, 2018 at 7:55pm

सच लगती, बढ़िया ट्विस्ट्स लेती यथार्थपूर्ण, कटाक्षपूर्ण सृजन हेतु सादर हार्दिक बधाई मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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