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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-99

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 99वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे"

221     2121    1221            212

मफ़ऊलु      फाइलातु        मुफ़ाईलु       फाइलुन

(बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ )

रदीफ़ :-कहें जिसे 
काफिया :- आ (अच्छा, प्यारा, अपना, तमाशा, दरिया, सहरा  आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 सितम्बर दिन गुरूवार को हो जाएगी और दिनांक 28 सितम्बर दिन शुक्रवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आदरणीय अमित जी ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है । मुबारकबाद कुबूल करें

आदरणीय रवि शुक्ला जी गजल पसंद करने और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

जनाब अमित कुमार "अमित" जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

कोई नहीं जहान मे अपना कहें जिसे।
झूटों की बस्तियों में भी सच्चा कहें जिसे।।--मतले के सानी मिसरे में रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हुआ,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'झूठा वही निकलता है सच्चा कहें जिसे'

जंगल है कंकरीट के जिस और देखिये।
मिट्टी कहां नसीब वो सहरा कहें जिसे।।--इस शैर का भाव सहीह नहीं,सहऱा में मिट्टी नहीं रेत होती है ।

है जिस्म की ही आरजु हर शख्स को यहां।
है ही नहीं ये प्यार वो गहरा कहें जिसे।।--ये शैर ठीक है ।

महफिल में आज फिर सनम आये नकाब में।
नजरों से हो वो बात इशारा कहें जिसे।।इस शैर में रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हुआ,भाव की दृष्टि से भी कमज़ोर है ।

तुम क्यों जरा सी बात पे बैठे उदास हो।
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे।।--गिरह ठीक है ।

सरहद के गुनहगार को इतना तो मारिये।
जोरों की हो अवाज तमाचा कहें जिसे।।--इस शैए में भी रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हुआ,भावपक्ष भी कमज़ोर है ।

यूं तो "अमित" हमाम में नंग हैं सब मगर।
है कौन इस समाज में नंगा कहें जिसे।।--मक़्ते के ऊला में सहीह शब्द है "हम्माम"और सानी मिसरे में सनअत-ए-तज़ाद नहीं,इसलिये मुह्मिल हो रहा है,मक़्ता यूँ कर सकते हैं:-

'हम्माम में तो सारे हैं नंगे "अमित"यहाँ

पहने बताओ कौन है,जामा कहें जिसे'

बाक़ी शुभ शुभ ।

आदरणीय समर सर इतने विस्तार से गजल पर अपनी प्रतिक्रिया देने और समझाने के लिए आपको तहे दिल से शुक्रिया आपने गजल के बारे में इतना विस्तार से बताया से वास्तविक ज्ञान की वृद्धि हुई आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आभार

जनाब अमित कुमार साहिब,ग़ज़ल कीअच्छी

कोशिश है, समर साहिब की इस्लाह पर तवज्जो करें,

आदरणीय मोहम्मद आफरोज जी गजल पसंद करने और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

आद0 अमित जी ग़ज़ल की अच्छी कोशिश है। आद0 समर साहब के इस्लाह को संज्ञान लीजियेगा। बहुत बहुत बधाई आपको

आदरणीय मोहम्मदक् सुरेंद्र जी गजल पसंद करने और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

है जिस्म की ही आरजु हर शख्स को यहां।
है ही नहीं ये प्यार वो गहरा कहें जिसे।

वाह अमित जी 

आदरणीय अमित जी, अच्छी कोशिश है. हार्दिक बधाई.

जनाब अमित कुमार साहिब,

ग़ज़ल कीअच्छी कोशिश है, मुबरकबाद क़बूल करें।,

 कोशिश जारी रखें,,

आद० अमित कुमार जी इस कठिन जमीन पर ग़ज़ल की बहुत अच्छी कोशिश की है मेरी और से बधाई स्वीकारें 

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