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क्लास के

सबसे होनहार बच्चे से

मैंने कहा

कल दो अक्टूबर है

और है

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की

जयंती   

तुम लिखो, एक निबंध

देश के राष्ट्र-पिता पर

और मुझको  दिखाओ

  • *     *

एक घंटे बाद

आया वह होनहार

लिखकर लाया था वह एक निबंध

जैसा मैंने कहा था  

  • *     *

 

उसने लिखा था

कल दो अक्टूबर है

और है

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की

जयंती   

एक गंजे और बूढ़े व्यक्ति की   

बहुत ही दरिद्र थे वह   

पहनते थे केवल एक मैली धोती

और उनकी आँखें

वे भी मायोपिक थी

इसीलिए उन पर रहता था हमेशा  

एक गोल-गोल चश्मा 

बड़ा ध्यान था शायद उनको समय का  

हमेशा खोंसे रहते थे

लटकौआ घड़ी    

धोती की फेंट में

चलने में भी उनको होता था कष्ट  

लिए रहते थे हमेशा एक लाठी

अपने दायें हाथ में

और कहलाते थे महात्मा

इस  दरिद्रता के कारण

कहते हैं अंग्रेजों  के चंगुल से

देश को छुडाने में

हाथ था उनका

और उन्हीं की वजह से

मिली थी देश को

शायद आजादी

और

और ---------

(मौलिक / अप्रकाशित )

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Comment by Sushil Sarna on October 3, 2018 at 4:38pm

आदरणीय डॉ गोपाल जी , सादर प्रणाम .. वर्तमान के ज्ञान का सुंदर और कटाक्षपूर्ण सृजन। आपकी रचना वास्तविकता को एक गहन सोच के साथ चित्रित कर रही है। कुछ सोचने को मजबूर करती इस सार्थक प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 3, 2018 at 4:35pm

आ. भाई गोपाल नारायण जी, गागर में सागर ...बहुत बहुत हार्दिक बधाई ।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 2, 2018 at 6:22pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी बहुत बेहतरीन रचना लिखी आपने बधाई हो 

Comment by Mohammed Arif on October 2, 2018 at 4:18pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी आदाब,

                         महात्मा गांधी को केंद्र में रखकर रची गई एक बहुत ही बेहतरीन रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on October 2, 2018 at 3:00pm

जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत उम्दा तंज़ है, वाह इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by vijay nikore on October 2, 2018 at 2:21pm

आज के बच्चों के सीमित ज्ञान पर सुन्दर कटाक्ष । हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी। आपका यहाँ आन सुखद लगता है।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2018 at 8:13am

बेहतरीन कटाक्ष और इस सदी के मीडियापा जनित यथार्थ। हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहिब। "और...और" में अनकहा अभिव्यक्त तो है, लेकिन आपकी लेखनी में हम पाठक और चाह रहे हैं। सादर।

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