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मौत की उम्मीद पर (ग़ज़ल)

मौत की उम्मीद पर जीने की आदत हो गयी
जिंदगी सूखे हुए पत्ते की सूरत हो गयी
ठंड ओलों की सही सूरज के अंगारे सहे
पीढ़ियों को पाल कर जर्जर इमारत हो गयी
चेहरा पैमाना बना है खूबियों का आज-कल
रंग गोरा है मगर गुमनाम सीरत हो गयी
धो दिया है तेज़ बारिश ने मकानों को मगर
टूटी फूटी झोंपड़ी वालों की शामत हो गयी
मैं! मेरा उत्कृष्ट सबसे! बाकी सब बेकार है
बस यही समझाने में अब हर जुबाँ रत हो गयी
©vrishty
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by राज़ नवादवी on October 17, 2018 at 11:31am

जी जनाब समर कबीर साहब, सादर. 

Comment by V.M.''vrishty'' on October 16, 2018 at 8:28pm
आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी,प्रणाम! आपकी दी हुई बधाई दर बधाई ,आपको बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद
Comment by नाथ सोनांचली on October 16, 2018 at 4:15pm

आद0 वी. एम वृष्टि जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Samar kabeer on October 15, 2018 at 10:42pm



चेहरा पैमाना बना है खूबियों का आज-कल'

ये मिसरा तो ठीक है,राज़ साहिब,"पैमाना" का अर्थ यहाँ नाप-तोल यंत्र से है ।

Comment by राज़ नवादवी on October 15, 2018 at 4:10pm

आदरणीय वृष्टि जी, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे बधाई स्वीकार करें. तीसरे शेर में 'अक्स पैमाना बना है' या 'चेहरा पैमां बना है' करने से मिसरा वज़न में आ जाएगा. बाक़ी गुणी जन बताएंगे. सादर 

Comment by V.M.''vrishty'' on October 15, 2018 at 3:12pm

आ० समर कबीर जी, बहुत बहुत आभार। मैं जरूर कोशिश करूँगी।

Comment by Samar kabeer on October 15, 2018 at 2:49pm

मुहतरमा "वृष्टि" जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

दिनांक 19-20;21 अक्टूबर को ओबीओ पर तरही मुशायरा होन्ने वाला है,इसके बारे में मुख्य पृष्ठ पर जानकारी मौजूद है,उसे पढ़ लें और मुशायरे में हिस्सा लें,वहाँ आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 14, 2018 at 9:00pm

आ. वृष्टि जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई।

Comment by V.M.''vrishty'' on October 14, 2018 at 7:54pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी, संध्या वंदन! जी सचमुच मुझे बह्र की जानकारी नहीं है। मैं लिखती रहती हूँ, मगर ज्यादा बंध के नही लिखती। लिखते समय विधा से और विधा की बारीकियों से ज्यादा मैं अपनी क्षमतानुसार विषय,भाव और प्रवाह पर ध्यान देती हूँ। 

मेरी रचना की सराहना करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! सादर..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 14, 2018 at 7:19pm

आदरणीया वृष्टि जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने..ग़ज़ल पढ़ के ये बिलकुल नहीं लगता कि आपको बह्र की जानकारी नहीं है।बहुत बहुत बधाई...

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