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"तरही ग़ज़ल नम्बर 4

नोट:-

तरही मुशायरा अंक-100 में 87 ग़ज़लें पोस्ट हुईं,मेरी इस ग़ज़ल में जो क़वाफ़ी इस्तेमाल हुए हैं वो बिल्कुल नये हैं ।

पहले सिल पर घिसा गया है मुझे

फिर जबीं पर मला गया है मुझे

जाल हूँ इक सियासी लीडर का

नफ़रतों से बुना गया है मुझे

कोई बारूद की तरह देखो

सरहदों पर बिछा गया है मुझे

कहदो तक़दीर से बखेरे नहीं

करके वो एक जा गया है मुझे

क़त्ल करने के बाद ख़्वाबों का

देके वो ख़ूँबहा गया है मुझे

हक़ किसी और का नहीं उस पर

दिल वो करके हिबा गया है मुझे

दर्द बढ़ता ही जा रहा है,"समर"

कैसी देकर दवा गया है मुझे

"समर कबीर"

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1378

Comment

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Comment by Samar kabeer on October 30, 2018 at 12:12pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on October 30, 2018 at 12:11pm

जनाब सुरख़ाब बशर साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on October 30, 2018 at 12:09pm

जनाब अजय तिवारी जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on October 30, 2018 at 12:08pm

जनाब संतोष जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on October 30, 2018 at 12:05pm

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on October 30, 2018 at 12:04pm

मुहतरमा अंजली गुप्ता जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on October 30, 2018 at 12:02pm

जनाब मिर्ज़ा जावेद बैग साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on October 30, 2018 at 12:00pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by vijay nikore on October 28, 2018 at 1:45am

आपके ख्यालों में हमेशा गहराई होती है जो बार-बार पढ़ने को पास बुलाती है। हार्दिक बधाई, भाई समर कबीर जी।

आजकल आपका स्वास्थ्य कैसा है ?

Comment by नादिर ख़ान on October 27, 2018 at 5:14pm

पहले सिल पर घिसा गया है मुझे

फिर जबीं पर मला गया है मुझे

जाल हूँ इक सियासी लीडर का

नफ़रतों से बुना गया है मुझे

आदरणीय समर कबीर साहब आपकी गज़लगोई के हम सब कायल है आप  कुछ न कुछ नया प्रयोग भी  अपनी गज़लों में करते रहते हैं जैसा की पहली गज़ल में आपने किया था और इस दफा आपने नए क़वाफ़ी के साथ उम्दा गज़ल कही।  आपकी हर गज़ल सीखने के एतबार से मुकम्मल किताब होती है  । बहुत मुबारकबाद आपको .......देरी   से गज़ल में आने के लिए मुआफ़ी चाहता हूँ ।

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