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ग़ज़ल नूर की- सोचिये फिर डूबने में कितनी आसानी रहे

.
सोचिये फिर डूबने में कितनी आसानी रहे
उनकी आँखों में जो मेरे वास्ते पानी रहे.
.
मैं किसी को जोड़ने में घट भी जाऊँ ग़म न हो
ज़िन्दगानी के गणित में इतनी नादानी रहे.
.
क़त्ल होते वक़्त भी मैं मुस्कुराता ही रहूँ
ताकि क़ातिल को मेरे ता-उम्र हैरानी रहे.
.
क़ाफ़िला यादों का गुज़रे रेगज़ार-ए-दिल से जब
आँखों में लाज़िम है सारी रात तुग़्यानी रहे.
.
क्यूँ भला सोचूँ वो दुश्मन है मेरा या कोई दोस्त
मैं रहूँ अव्वल तो बेशक़ कोई भी सानी रहे.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on November 3, 2018 at 1:58pm

आदरणीय नीलेश नूर साहब बहुत अच्छी गजल लिखने के लिए हार्दिक बधाई

Comment by TEJ VEER SINGH on November 3, 2018 at 12:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय निलेश जी। बेहतरीन गज़ल।

क़त्ल होते वक़्त भी मैं मुस्कुराता ही रहूँ 
ताकि क़ातिल को मेरे ता-उम्र हैरानी रहे. 

Comment by Samar kabeer on November 3, 2018 at 12:04pm

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

' क़ाफ़िला यादों का गुज़रे रेगज़ार-ए-दिल से जब
आँखों में लाज़िम है सारी रात तुग़्यानी रहे'

इस शैर पर अलग से दाद ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 3, 2018 at 11:44am

शुक्रिया आ. संतोष दादा 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 3, 2018 at 11:44am

शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 3, 2018 at 11:43am

शुक्रिया आ. बसंत जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 3, 2018 at 11:43am

शुक्रिया आ. राज़ साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 3, 2018 at 11:43am

शुक्रिया आ. रोहित जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 3, 2018 at 11:43am

शुक्रिया आ. बलराम जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 3, 2018 at 11:42am

शुक्रिया आ. गुरप्रीत जी 

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