For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

होश की मैं पैमाइश हूँ:........ग़ज़ल, पंकज मिश्र..........इस्लाह की विनती के साथ

22 22 22 2

मयख़ानों की ख़ाहिश हूँ
होश की मैं पैमाइश हूँ

चाँद न कर मुझ पर काविश
ब्लैक होल की नाज़िश हूँ

हल ना कर पाओगे तुम
ज़िद की ऐसी नालिश हूँ

जल जाएगा हुस्न तेरा
मैं सूरज की ताबिश हूँ

आ मत मेरी राहों में
तूफ़ानों की जुंबिश हूँ

मौलिक अप्रकाशित

उर्दू का ज्ञान लगभग शून्य है, इसलिए, मुझे सन्देह है कि शायद मेरे भाव अस्पष्ट हों..….इसलिए हार्दिक विनती है कि इस ग़ज़ल के कथ्य पर भी सुझाव दिया जाए

Views: 633

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 24, 2018 at 3:07pm

आदरणीय अजय सर सादर प्रणाम।

एक प्रयास था....बस....सुधार की कोशिह जारी है

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 24, 2018 at 3:06pm

आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम और बहुत बहुत आभार

Comment by Ajay Tiwari on November 17, 2018 at 4:48pm

आदरणीय पंकज जी, रदीफ़ और काफ़िया ऐसा चुने जिसमें कथ्य के प्रभावी विस्तार की पर्याप्त जगह हो. शेष आदरणीय समर साहब कह चुके हैं.आख़िरी शेर अच्छा लगा. एक अच्छी कोशिश के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Samar kabeer on November 15, 2018 at 2:32pm

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब, सबसे पहले आपकी ग़ज़ल के क़वाफ़ी के अर्थ देखते हैं :-

"ख़्वागीश"--आरज़ू,तमन्ना

"पैमाइश"---नाप,ख़ुसूसन ज़मीन का नाप

"काविश"---तलाश

"नाज़िश"---फ़ख़्र(गर्व),घमण्ड,मुहावरा-नाज़ होना,फ़ख़्र(गर्व) होना

"नालिश"---रोना-पीटना,फ़रयाद,दुहाई

"ताबिश"---हरारत,गर्मी,तपिश,चमक,धूप की चमक,रोशनी,नूर

"जुम्बिश"--हरकत,हिलना-जुलना

'  मयख़ानों की ख़ाहिश हूँ
होश की मैं पैमाइश हूँ'

मतला क़वाफ़ी के अर्थ के मुताबिक़ सहीह नहीं,इन्हीं क़वाफ़ी में मतला यूँ हो सकता है:-

"नभ पाने की ख़्वाहिश हूँ

धरती की पैमाइश हूँ"

'  चाँद न कर मुझ पर काविश
ब्लैक होल की नाज़िश हूँ'

इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-

'चाँद न कर मेरी काविश

ब्लैक होल की नाज़िश हूँ'

' हल ना कर पाओगे तुम
ज़िद की ऐसी नालिश हूँ'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं,इसे यूँ कर सकते हैं:;

'तोड़ न इसको पाओगे

मैं वो ज़िद की साज़िश हूँ''

जल जाएगा हुस्न तेरा
मैं सूरज की ताबिश हूँ

आ मत मेरी राहों में
तूफ़ानों की जुंबिश हूँ'

ये दो अशआर ठीक हैं ।

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 14, 2018 at 3:28pm

जी प्रणाम, मुझे इन्तज़ार है

Comment by Samar kabeer on November 14, 2018 at 12:04pm

आपकी ग़ज़ल पर पुनः आता हूँ,समय मिलते ही ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service