For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्वावलम्बी (लघुकथा)

“अरे यार! हद्द है ये तो, अब क्या इसके हाथ का खाना पड़ेगा?”

लोकल ट्रेन में बैठे एक व्यक्ति ने कहा। एक किन्नर इडली-सांभर के डिब्बों का थैला लिए डिब्बे में घूम रहा था| उसकी आवाज़ और उसके हाव-भाव से लोग उसकी ओर आकर्षित तो हो रहे थे | पर उससे सामान कोई नहीं खरीद रहा था| एक मनचले ने कहा, “ क्यों बे हिजड़े अब हमारे ऐसे दिन आ गए हैं कि ...|”

किन्नर ने उसके प्रतिउत्तर में कहा, “ क्यों रे? क्या तू किसी और तरह का अन्न खाता है?|

मनचले ने घृणा से उसकी ओर देखा|

किन्नर ने गुस्से से ताली बजायी और कहा,” क्यों बे भूतनी के, मैं अपनी मर्ज़ी से अपने पैरों पर खड़ा हो रहा हूँ, तुझे क्यों पेट में दर्द हो रहा है? हाँ नहीं बजानी मुझे ताली... नहीं मांगनी मुझे भीख... तुझे तो...|”


अब तक तो ट्रेन के इस डिब्बे में थर्ड जेंडर को इस व्यवसाय में देख, लोगों के बीच कौतुहल का विषय बन गया था |

मनचला तो अपने स्टेशन पर उतर गया| किन्नर अब भी अपने सामान को बेचने के लिए प्रयास कर रहा था|

एक सीट पर एक बच्चा अपनी माँ से सट कर बैठा हुआ था, और शरारतन वह भी किन्नर की स्टाइल में ताली बजा रहा था|


उस बच्चे की हरकतों ने किन्नर का ध्यान आकर्षित किया और वह उस औरत के पास पहुँच गया, “अम्माँ! तू तो ले ले, तेरा बच्चा तो हमारी बिरादरी का लग रहा है, तू तो समझ सकती है अन्न तो सबके लिए समान होता है।”

उस औरत ने आस-पास वालों को देखा जो उस किन्नर और उसके बच्चे को निहार रहे थे और आपस में खुसुर-फुसुर कर रहे थे|

बच्चे को भी भूख लगी थी, वह माँ की ओर देख रहा था| माँ ने इडली-सांभर ख़रीदा और अपने बच्चे को दिया|

उस किन्नर ने उस माँ से पूछा, “इसको हमारे समाज में क्यों नहीं दिया? तू कहे तो मैं कल आ जाती हूँ घर अपने मुखिया को लेकर...।

“न, अभी तो तुमने कहा अन्न में फ़र्क़ नहीं, तो हममें और तुममें फ़र्क़ क्यों...? और मैंने इसको पुरे नौ महीने कोख में रखा है...| प्रसव-पीड़ा के बाद ही इसका जन्म हुआ है, क्या हुआ जो ये... तो क्या यह मेरा बच्चा नहीं?” माँ अपना पक्ष रख रही थी, लोग उसकी बातों को ध्यान से सुन रहे थे|
बच्चा बड़े चाव से इडली-सांभर खा रहा था| माँ उसको निहार रही थी, किन्नर ने प्यार से उसको एक और इडली दे दी, बच्चा कृताग्यापुर्वक उसको देख रहा था|
आस-पास के लोग यह सब देख रहे थे, उनकी खुसुर-फुसुर अब भी चल रही थी|

किन्नर ने माँ से कहा, “ अम्मा ! हमारा अपना एक समाज है, तू इस बच्चे को हमें दे दे, हम इसकी परवरिश करेंगे|”

“क्यों? तुम लोग क्यों करोगे मेरे बच्चे की परवरिश? मैं अपना बच्चा किसी को नहीं दूँगी...|” कहते हुए उसने अपने बच्चे को छाती से लगा लिया |


किन्नर की आँखों से अश्रु बह रहे थे, “सच कहा अम्माँ, न अन्न-अन्न में फ़र्क़ नहीं होता न इंसान-इंसान में, पर काश! इस फर्क को दूर करने वाली आप जैसी अम्मा सब को मिल जाती|” यह कहते हुए उसने उस माँ के चरण छुए|

अनायास ही माँ का हाथ उस किन्नर के सर पर चला गया| किन्नर के अश्रु अब भी बह रहे थे, उसने बच्चे को प्यार किया और वह अपना सामान लिए आगे बढ़ गया|


डिब्बे में बैठे मुसाफ़िर अब इस छोटे किन्नर को देख रहे थे और अब वह चर्चा का विषय बन गया था। पर उसकी माँ उसको सीने से लगाए गौरव का अनुभव कर रही थी।

मौलिक एवं अप्रकाशित।

Views: 723

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on December 27, 2018 at 6:03pm

बहुत बढ़िया विषय उठाया है आपने इस लघुकथा में, प्रस्तुति में कहीं कहीं थोड़ी नाटकीयता आ गयी है जिसे दुरुस्त किया जा सकता है. किन्नर भी तो इंसान ही हैं और उनको भी अपने ढंग से जीने का हक़ है. बहरहाल बहुत बहुत बधाई इस गंभीर विषय पर लिखने के लिए आ कल्पना भट्ट साहिबा

Comment by babitagupta on December 27, 2018 at 3:27pm

बहुत ही मार्मिक, संवेदना भरी रचना,विक्षिप्त सोच को आइना दिखाती ।बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा, आदरणीया कल्पना दी।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 24, 2018 at 11:13pm

धन्यवाद आदरणीय फूल सिंह जी| 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 24, 2018 at 11:12pm

धन्यवाद आदरणीया नीलम उपाध्याय जी| 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 24, 2018 at 11:12pm

नमस्ते आदरणीय समर भाई ! आपको लघुकथा लम्बी लगी, मैं पुनः इसको लिखने का प्रयास करुँगी| सादर|

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 24, 2018 at 11:11pm

धन्यवाद आदरणीय शहजाद जी|

Comment by PHOOL SINGH on December 24, 2018 at 2:42pm

सच्चाई को बयां करती अच्छी लघु कथा बधाई स्वीकारें

Comment by Neelam Upadhyaya on December 24, 2018 at 11:52am

बहुत ही मार्मिक कथा बनी है।  प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई। 

Comment by Samar kabeer on December 23, 2018 at 8:49pm

बहना कल्पना भट्ट रौनक़ जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा है,लेकिन लघुकथा कुछ तवील(लम्बी)हो गई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 22, 2018 at 9:20pm

बहुत बढ़िया मार्मिक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना भट्ट साहिबा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
54 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
55 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
55 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
56 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
57 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service