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2122 2122 2122

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गांव भी अब तो शहर बनने लगा है
प्यार औ सद्भाव भी घटने लगा है

खुल गई है खूब शिक्षा की दुकानें
ज्ञान भी अब दाम पर बिकने लगा है

हो गये है लोग बैरी अब यहां भी
खून सड़कों पर बहुत बहने लगा है

गांव के हर मोड़ पर टकराव है अब
खेत औ खलियान तक जलने लगा है

सोच ’‘मेठानी‘’ हुआ है, क्या यहां पर
जो कभी बोया वही उगने लगा है


( मौलिक एवं अप्रकाशित )
- दयाराम मेठानी

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Comment by Samar kabeer on January 28, 2019 at 10:29am

क़वाफ़ी का ये मूल सिद्धांत याद रखें ।

हर क़ाफिये के पहले हर्फ़-ए-रवी होता है,हर्फ़-ए-रवी कहते हैं क़ाफिये के पहले बार बार आने वाले हर्फ़(अक्षर) को,यहाँ आपका क़ाफ़िया 'ने' है और उसके पहले आने वाला अक्षर कभी 'न',कभी 'ट' हो रहा है,मान लीजिए आपने क़ाफ़िया लिया 'बहने'अब इसमें 'ने'क़ाफ़िया हुआ और उसका हर्फ़-ए-रवी 'ह' हुआ,अब आगे आपको 'रहने','सहने',कहने क़वाफ़ी लेना होंगे,उम्मीद है आप समझ गए होंगे ?

Comment by Dayaram Methani on January 27, 2019 at 11:22pm

आदरणीय रवि शुक्ला जी, प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।

Comment by Dayaram Methani on January 27, 2019 at 11:22pm

आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, प्रोत्साहन देने एवं काफिया के बारे जानकारी देने के लिए बहुत बहुत आभार।

Comment by Dayaram Methani on January 27, 2019 at 11:20pm

आदरणीय दिगंबर नासवा जी, प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।

दयाराम मेठानी

Comment by दिगंबर नासवा on January 27, 2019 at 7:35pm

अच्छा प्रयास है ग़ज़ल का दयाराम जी .... काफिये की जानकारी उस्तादों द्वारा ... इस बात का हमें भी इंतज़ार रहेगा ... 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 27, 2019 at 7:05pm

जनाब दया राम साहिब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है मगर क़ा फिए चुन ने में चूक हो गई है, मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l औ को पूरा और लिखिए   हर शेर का क़ा फिया अलग है l

बनने, घटने , बिकने, जलने, बहने, उगने

हम क़ा फिया __घटने, पटने, रटने

                        जलने , चलने, पलने  , बदलने 

                        बहने, कहने, सहने, रहने

मेरे ख़याल से समझ में आ गया होगा l

Comment by Ravi Shukla on January 26, 2019 at 10:08pm

आदरणीय दयाराम जी मिठाई साहब गजल की कोशिश अच्छी है मुबारकबाद कुबूल करें मत लेने बढ़ने और घटने शब्द लिया है ने हटाने के बाद बंद और घट बसता है जिसमें कि तुकांत नहीं है शायद ऐसा कुछ हो सकता है विस्तार से समर साहब बताएंगे उर्दू में शह्र 21 के वज़्न में लिया जाता है आपने 12 में लिया है यह बहस का विषय है इसलिए अधिक नहीं नहीं करेंगे आपने और को हिंदी छंदों के रीतिकालीन भक्ति कालीन युग के नुसार औ रूप में इस्तेमाल किया है उर्दू में और को पूरा लिखें और यह मात्रा गिरा कर (अर) के रूप में द्विमात्रिक  किया जा सकता है। सादर

Comment by Dayaram Methani on January 25, 2019 at 11:09pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय समर कबीर जी। मार्ग दर्शान की प्रतीक्षा रहेगी। सादर।

Comment by Samar kabeer on January 25, 2019 at 10:19pm

अभी ओबीओ के तरही मुशायरे में व्यस्त हूँ, समय मिलते ही विस्तार से बताऊंगा ।

Comment by Dayaram Methani on January 25, 2019 at 7:58pm

आदरणीय समर कबीर साहब, प्रोत्साहन हेतु आभार। काफिया की कमी बाबत कुछ स्पष्ट लिख दें तो उचित होगा। सादर।

कृपया ध्यान दे...

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