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हर नफ़र इस शह्र का कुछ इस तरह बस जी रहा--------ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

लड़खड़ाती साँस डगमग आस व्याकुल मन सदा
हर नफ़र इस शह्र का कुछ इस तरह बस जी रहा

अनगिनत सपने सजा कर, चाहते निंदिया नयन
रात भर बेचैनियों की, है ग़ज़ब देखो प्रथा

पत्थर-ओ-फ़ौलाद की दीवारें मुझ को चुभ रहीं
आप यदि अपने महल में खुश हैं फिर तो वाह वा

सृष्टि की हर एक रचना का अलग इक सत्य है
कैसे लिख दूँ एक है व्यवहार जल औ आग का

फूल की डाली कली से फुसफुसा कर कह गई
ओढ़ ले काँटे सुरक्षा का यही है रास्ता

बारिशों के आब सा मन उस का तन चंदन सा है
इस नगर में हुस्न उस जैसा नहीं है दूसरा

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 5, 2019 at 8:05pm

आदरणीय लक्ष्मण सर बहुत आभार

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 5, 2019 at 8:04pm

आदरणीय बाऊजी प्रणाम

1.नफ़र का अर्थ व्यक्ति लिया गया है

2. शेष दोनों में बह्र गड़बड़ हो रही, सुधारता हूँ

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 4, 2019 at 6:44am

आ. भाई पंकज जी, गजल का प्रयास अच्छा है ।हार्दिक बधाई । आ.भाई समर जी की बातों का संज्ञान लें।

Comment by Samar kabeer on July 28, 2019 at 2:28pm

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'हर नफ़र इस शह्र का कुछ इस तरह बस जी रहा'

इस मिसरे में 'नफ़र' शब्द का क्या अर्थ लिया है?

'अनगिनत सपने सजाते, नैन फिर भी नींद चाहें'

इस मिसरे की बह्र चेक करें ।

'रात भर बेचैनियों की, जबकि है पूरी व्यवस्था'

इस मिसरे की बह्र चेक करें ।

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