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एक ग़ज़ल मनोज अहसास इस्लाह के लिए

2×15

मेरे मन की लाचारी में जल जायें ना मेरे हाथ
मुझको फिर से पावन कर दे तू हाथों में लेके हाथ

मम्मी,पापा,बहना,भाई,बीवी,बच्चे और साथी
काम-समय अपने हाथों में दिखते मुझको सबके हाथ

सुन लेने की आदत को कमजोरी समझा जाता है
सच्चे साबित हो जाते हैं पल-पल हाथ नचाते हाथ

सच कहने की चाहत तो है लेकिन इन झूठों के बीच
कैसे सबको बतलाऊं मैं मेरे भी हैं काले हाथ

अपना मानना,अपना कहना,अपना होना बात कई
लेकिन मुश्किल से मिलते हैं साथ निभाने वाले हाथ

बन जाएगा रास्ता कोई बियाबान अंधियारों में
छूट ना जाए इन हाथों से मेरे साथी तेरे हाथ

सारी दुविधा,सारा मातम, फटे जिस्म के हिस्से में
और सलामत रह जाते हैं वें मनमानी करते हाथ

किसकी जिम्मेदारी में है यौवन का ये पागलपन
प्यार,मुहब्बत,इश्क बताकर सिर्फ शरारत करते हाथ

कई बार मेरी आंखों ने सत्य पराजित देखा है
कैसे खुद को समझाऊं मैं दाता के हैं लंबे हाथ

आस की माला टूट गई है सारे मोती चकनाचूर
दीवारों से टकराया सिर,सिर पर फिर से पटके हाथ

लाचारी कुछ मन की है, कुछ तन की है,कुछ यौवन की
इक सूरत में सौ शक्लें हैं एक हाथ में कितने हाथ

अहसास अगर हरजाई होते तो कितना अच्छा होता
किसी के घर में रंग आते और किसी के घर धो लेते हाथ

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by मनोज अहसास on September 8, 2019 at 4:18pm

आपकी बहुमूल्य इस्लाह के लिए हार्दिक आभार

सुझावों का सादर स्वागत

Comment by Samar kabeer on September 7, 2019 at 2:42pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'मेरे मन की लाचारी में जल जायें ना मेरे हाथ'

उर्दू शायरी में 'न' को 2 पर लेना उचित नहीं ।

'अपना मानना,अपना कहना,अपना होना बात कई'

'मानना' शब्द के कारण इस मिसरे की लय बाधित हो रही है,देखें ।

'बन जाएगा रास्ता कोई बियाबान अंधियारों में'

इस मिसरे की भी लय बाधित है,देखिये ।

'छूट ना जाए इन हाथों से मेरे साथी तेरे हाथ'

इस मिसरे में 'ना' को "न" कर लें ।

'कई बार मेरी आंखों ने सत्य पराजित देखा है'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'कितनी बार मिरी आँखों ने सत्य पराजित देखा है'

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