For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-107 (विषय: इंसानियत)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-107 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय 'इंसानियत', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-107
विषय: 'इंसानियत' 
अवधि : 28-02-2024 से 29-02-2024 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 222

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागतम

इंसानियत का तकाजा  - लघुकथा - 

अचानक मेरी पत्नी को बेटी की डिलीवरी के लिये  बंगलोर जाना पड़ा। उसका वहाँ अधिक रुकने का कार्यक्रम था। मेरे साथ जाने से वहाँ और काम बढ़ जाता अतः मैंने अपना जाना रद्द कर दिया। 

मेरा बेटा पूना में था। जब उसे यह जानकारी मिली तो उसने मेरी पूना की टिकट कर दी। मैं पूना पहुंच गया। दिनचर्या सही चल रही थी। 

लेकिन आज एक ऐसी घटना हुई कि मेरी आत्मा कांप गई।

मैं, बेटा और उसकी पत्नी रात को करीब साढ़े ग्यारह बजे बेटे के सासु और ससुर को एयरपोर्ट छोड़ कर लौट रहे थे। एक बुजुर्ग  गार्ड ने सोसाइटी का गेट खोला।मुझे उसकी शक्ल कुछ जानी पहचानी सी लगी। मैं वहीं गाड़ी से उतर गया। 

बेटे को बोला कि तुम चलो मैं आता हूँ। मैंने उस गार्ड के पास जाकर उसे गौर से देखा। मुझे यकीन नहीं हुआ।

मैंने उसे नाम से पुकारा। वह मेरे पास आया,"आपने मुझे पहचाना?" मैंने पूछा।

"शायद देखा है आपको।" 

"शुक्ला जी, आप यहाँ गार्ड की नौकरी कर रहे हो। वह भी इस उम्र में।" 

"सब तक़दीर के खेल हैं।

"मैं कुछ समझा नहीं? खुलकर बताओ।" 

"क्यों मेरे जख्मों को कुरेदना चाहते हो सिंह साहब? मुझे मेरे हाल पर जीने दो।" उसकी आँखों से अविरल आँसू बहने लगे।

मैंने उसे कुर्सी पर बिठाया। एक बोतल में वहीं पर रखा पानी पिलाया। थोड़ी सांत्वना दी।

"शुक्ला जी, आप एक मैकेनिकल इंजीनियर हो। हमारे साथ एक सरकारी कंपनी में मैनेजर थे। आज आपको एक गार्ड की नौकरी करते देख दुख के साथ आश्चर्य भी हो रहा है। आपका तो एक बेटा भी था। शायद कहीं विदेश में बस गया था।

"सिंह साहब, अब आपसे क्या छुपाना। यह सब उसी की करतूतों का परिणाम है जो कि हम भुगत रहे हैं।

"ऐसा क्या कर दिया उसने?" 

मेरे रिटायर होने के बाद मेरी पत्नी को कैंसर हो गया था। इलाज बहुत महँगा था। सब जमा पूँजी समाप्त हो चली थी। मैंने बेटे को विदेश में फोन पर कुछ मदद करने को कहा। लेकिन उसने कुछ नहीं किया। बाद में फोन लेना भी बंद कर दिया।

मजबूरन मुझे मकान बेचना पड़ा। हम किराये का घर लेकर रहने लगे। साल भर बाद पत्नी भी छोड़ गई। 

मैंने बहुत जगह नौकरी के लिये हाथ पैर मारे। लेकिन सत्तर साल के बूढ़े को कौन नौकरी देता है। चाहे वह कितना ही पढ़ा लिखा और अनुभवी क्यों ना हो। कोई चपरासी रखने को भी राजी नहीं था।" 

"फिर यहाँ पूना कैसे पहुंचे?”

मैं पूरी तरह टूट चुका था।मेरे समक्ष आत्म हत्या के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। लेकिन सही वक्त पर मेरे एक परिचित ठेकेदार ने मुझे बचा लिया।यह मेरे उसी परिचित ठेकेदार की बिल्डिंग है।। बस तब से यहीं हूँ।यहीं सोसाइटी में गार्डों के रहने की व्यवस्था है।

"शुक्ला जी, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि एक बेटा अपने माँ बाप के साथ ऐसा सलूक कैसे कर सकता है। जिसे पाल पोस कर, पढ़ा लिखा कर इतना काबिल बनाया हो।

"सिंह साहब, होनी प्रबल होती है। हमारे कोई संतान नहीं थी। अतः पत्नी की ज़िद पर हमने उसे अनाथालय से गोद लिया था।" 

मौलिक एवं अप्रकाशित

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।

हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।

आदाब। बढ़िया रचना से आग़ाज़ हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी। इंसानियत के आग़ाज़ से ग़ैर -इंसानियत (हैवानियत)के अंजाम तक के सफ़र में परिचित ठेकेदार की इंसानियत और गार्ड ड्यूटी के दायित्व रूपी इंसानियत का बख़ूबी चित्रण। लघुकथा विधागत अतिरिक्त विवरण सहित विस्तार हो गया है रचना में। सब कुछ कह देने के बजाय विसंगति के एक पल को उभारकर इसे एक बढ़िया तंजदार/विचारोत्तेजक लघुकथा रूप में परिमार्जित किया जा सकता है मेरे विचार से। (टिप्पणी नोएडा सेक्टर 134 से)

हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद जी।शारीरिक अस्वस्थता के कारण लघुकथा को अधिक समय नहीं दे पाया।

अच्छी लघुकथा है आदरणीय तेजवीर सिंह जी। अनावश्यक विस्तार के सम्बन्ध में आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी से सहमत हूँ। अपने स्वास्थ्य का ख़याल रखिए। बहुत-बहुत बधाई।

हार्दिक आभार आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।

हार्दिक बधाई इस लघुकथा के लिए आदरणीय तेजवीर जी।विस्तार को लेकर लघुकथाकार मित्रों ने जो कहा है मैं उससे सहमत हूँ।अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखिये।

हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी।

टुकड़े (लघुकथा):


पार्क में लकवा पीड़ित पत्नी के साथ वह शिक्षक एक बैंच की तरफ़ पहुंचा ही था कि उसने देखा कि दो सात-आठ साल की बच्चियां मिट्टी के ढेर से दो सफ़ेद टुकड़े उठाकर उनसे लिखने की कोशिश कर रही थीं। एक उन्हें चॉक कह रही थी। दूसरी उन्हें चॉक मानने को तैयार नहीं थी।


शिक्षक ने अपनी ज़ेब से दो‌ चॉक के टुकड़े निकाल कर उन्हें बांट दिए। दोनों उछल कर बोलीं, "अंकल, असली की चॉक!" फ़िर‌ वे कोई खेल खेलने लगीं।


थोड़ी देर बाद वे‌ दोनों एक महिला के साथ‌ लौटीं और चॉक के दोनों टुकड़े शिक्षक को उस महिला को तिरछी निगाहों से देखते हुए दुखी चेहरे के साथ लौटाते हुए बोलीं, "अंकल, ये रही आपकी चॉक। वापस ले लीजिए।"


तभी वह महिला भी तुरंत बच्चियों से बोली, "पार्क में‌ 'सफ़ेद‌ चीज़' किसी से नहीं लेना चाहिए। पता नहीं 'वह' कौन‌ हो?"


शिक्षक ने कुछ सोचा और समझा। फ़िर चॉक के दोनों टुकड़े वापस अपनी ज़ेब में रख लिये। बच्चियां उस महिला के साथ जा चुकीं थीं।


(मौलिक व अप्रकाशित)

//"पार्क में‌ 'सफ़ेद‌ चीज़' किसी से नहीं लेना चाहिए। पता नहीं 'वह' कौन‌ हो?"// इस पंक्ति को समझने में असमर्थ हूँ आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी। बहरहाल इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
5 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
5 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो

.तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो जो मुझ में नुमायाँ फ़क़त तू ही तू हो. . ये रौशन ज़मीरी अमल एक…See More
5 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 171 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई श्यामनाराण जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"वाहहहहहह गुण पर केन्द्रित  उत्तम  दोहावली हुई है आदरणीय लक्ष्मण धामी जी । हार्दिक…"
Tuesday
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
Tuesday
Shyam Narain Verma commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - उस के नाम पे धोखे खाते रहते हो
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Monday
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service