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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-148

विषय - "प्यार का मौसम"

आयोजन अवधि- 11 फरवरी 2023, दिन शनिवार से 12 फरवरी 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 11 फरवरी 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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स्वागतम

सादर अभिवादन।

गीत
*****
खो गया है अब कहीं वो प्यार का मौसम।
शेष जो वह  देह  के   व्यापार का मौसम।।
*
अब समय से पूर्व कलियाँ डाल पर चटकीं।
और आँखें लोक  की  बस  देह पर अटकीं।।


तू न तो क्या, और  तो  हैं  सोचकर बैठा
अब कहाँ बस एक को शृंगार का मौसम।।
*
है रिझाता कौन मन को आज मन परिमित।
कौन हो पाया भला अब आत्म से परिचित।।


रूठने की  रीत  बिसरी  हर कली इस युग।
अब कहाँ दिखता भला मनुहार का मौसम।।
*
अब कहाँ हैं भर नगर में पींग के अवसर।
रख  रहे  सम्बंध  जैसे  लोग  हों नभचर।।


सात जन्मों की कथा तज गाँव भी बदला।
भा रहा हर  ओर   यूँ  पतझार का मौसम।।
*
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत्त विषय पर सुन्दर गीत हेतु बहुत बहुत बधाई।

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थित और प्रशंसा के लिए आभार।

छंद मुक्त रचना

प्यार का मौसम
क्या होता है
ये कहाँ होता है
हमने कभी सुना नहीं
कभी कहीं देखा भी नहीं
हमने तो देखे है
नफरत के बड़े बड़े बाग
पेड़ पौधे और उनकी घास।

घर घर में तकरार है
वतन का भी बंटाढार है
सारा विश्व नफरत के
आगे लाचार है।
जो भी मुँह खोलता है
जहर भरे शब्द बोलता है।
मीठे बोल सुने तो
सदिया बीत गई।

आज प्यार के नाम होता है
नाटक
छलावा
या फिर वासना
का व्यवहार है।
प्यार तो समर्पण है
पर आज तो खूसूरत जिस्म
के होते है टुकड़े टुकड़े
वाह! क्या प्यार है?

आज कहीं नहीं प्यार है
प्यार बना ठगों का व्यापार है
प्रेम करने वाले लुटते है
पिसते है, पिटते है
पर
प्यार को सदा तरसते है।


एक प्रेम दीवानी
प्रेम प्याले के नाम
पी गई थी जहर का प्याला
और कहा
जो मैं जानती प्रेम किये दुख होय
नगर ढिंढोरा पीटती प्यार न करियो कोय।
- दयाराम मेठानी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुन्दर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।

← मेरे बसंत

चाय का घूँट तो रोज

भरती हूँ  धीरे धीरे 

सुबह शाम

घर के बगीचे में या

छत पर गुनगुनी धूप के साथ 

फिर भी आज शाम कि चाय

 कुछ खास थी

चुसकी भरते ही

कई दिनों से

निस्तेज पडी मेरी देह में

सरसराहट दौड़ गई

बागीचे मे बहती मंद बयार

नव कोंपल पत्तों की सरसराहट

बसंती फूलों की मधुर सुगंध

देह मे नव संचार कर गई 

एहसास दिला गई उसके आने का, 

जिसके

इंतजार में प्रकृति गर्मी, बारिश 

ठंड के थपेडे झेलती है और फिर 

बसंत की गोद मे बैठ नवांकुरो को देख 

आल्हादित होती है.

मौलिक व अप्रकाशित 

आ. नयना जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

गीतिका छंद

प्यार का मौसम बसन्ती हैं बहारें अब प्रकृति
फूल खिलते हाल रंगों गंग लहरों है विकृति
स्वर्ण किरणें सूर्य बँटती सात रंगों धूप में
प्रिज्म बनते हैं नदी - नालों तटों बहु रूप में

बह रही बादे सबा है बागवाँ खुशहाल है
फागुनी है कहकशाँयें और लाली गाल है
बज रहे हैं ढोल ताशे फाग की धुन शोर है
अठखेलियाँ तरु तले अरु नाचता वो मोर है

पर्व मनता प्रेम का है काम वेला शाम की ।
साधते भगवान बाणों भावनायें काम की ।।
है युवा भी मस्त सारे युवतियाँ अंगार सी ।
खेलती खुल वासनायें चंचला संसार सी ।।

रूप-यौवन खिलखिलाता जीवनी जो पास है ।
रंग का त्यौहार होली है निकट उल्लास है ।।
मस्त शिव हैं घुट रही जो भाँग भी मधुमास है।
प्यार मौसम घुल रहा आनंद सबके पास है ।।

मौलिक व अप्रकाशित

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