परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 149 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |
इस बार का मिसरा जनाब 'मुनीर नियाज़ी' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |
'इस रोज़-ओ-शब में ऐसा भी इक दिन कमाल हो'
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़
रदीफ़ --हो
क़ाफ़िया:-(आल की तुक) जमाल,हाल, चाल,मलाल,ज़वाल,विसाल,मिसाल आदि
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 25 नवम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 नवम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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मंच संचालक
जनाब समर कबीर
(वरिष्ठ सदस्य)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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तरही ग़ज़ल :
221 2121 1221 212
बाक़ी न दुख कोई न वो उसका सवाल हो
वो मेरा जाँनिसार सनम अब तो निहाल हो
वो एक दिन की वस्ल कहीं पर मिसाल हो
हमराज़ दिलनशीं भी हो यारा कमाल हो
अफ़रोज़ कोई दोस्त वो अपना कहीं जहाँ
रोशन वो ज़िन्दगी मेरी दुनिया बहाल हो
जलवा वो आबशारों का गिरते हों घाटियों
जंगल बहुत ज़रूरी हैं जीवन बहाल हो
बदहाल अब हरे-भरे गंगा किनारे हैं
उन कंकरीट महलों न दुनिया मुहाल हो
आबोहवा नगर कहीं ज़हरीली हो गई
हमदम का गाँव आज सहारा मिसाल हो
कमज़ोर कन्धों आ पड़ी जिम्मेवारी बड़ी
मुश्किल है साँस लेना कि जीवन न काल हो
सारे मलाल ज़ीस्त के जाते रहें ख़ुदा
"इस रोज़-ओ-शब में ऐसा भी कोई कमाल हो"
आराम सारे जा चुके दुनिया जहान के
हमदम रहा नहीं कोई जानाँ बहाल हो
हमराह सारे ज़ीस्त के हमसे बिछुड़ गये
है ज़िन्दगी कहीं सज़ा 'चेतन' सवाल हो
मौलिक व अप्रकाशित
जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आयोजन में सहभागिता के लिए आपका धन्यवाद ।
आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर अभिवादन ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय चेतन जी, ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें।
आद0 चेतन प्रकाश जी सादर अभिवादन। आद0 कई शेर में सानी ऊला में राब्ता सटीक नहीं है और कई में रदीफ़ से न्याय नहीं लग रहा। प्रयास के लिए बधाई
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको।
आदरणीय चेतन जी नमस्कार
ग़ज़ल की बधाई आपको
सादर
हो बद्र या क़मर हो या चाहे हिलाल हो
हर मरहले में आप का दाइम जमाल हो /1
प्यारे बहुत हैं रंज हो ग़म हो मलाल हो
हम चाहते हैं इन की बहुत देखभाल हो /2
ग़मगीन लोग आसमाँ देखें उमीद से
संग आफ़ताब के ग़मों का भी ज़वाल हो /3
रफ़्तार काफ़िले की बहुत ख़ूब है मगर
जो लड़खड़ा रहे हैं कुछ उन का ख़याल हो /4
सोते हैं ये अलाव जला घुटने मोड़ कर
इन को रज़ाइयों का भला क्यूँ मलाल हो /5
तंज़ीम मुफ़लिसों की ये फ़रियाद लायी है
खाली हो जाम-ए-जम भरा जाम-ए-सिफ़ाल हो /6
ये जुस्तजू है इश्क़ की जल्दी न कीजिये
दिल भी मिलेंगे पहले ज़रा बोलचाल हो /7
आ जाएँ आप और मुसीबत न आए साथ
"इस रोज़-ओ-शब में ऐसा भी इक दिन कमाल हो" /8
कुछ नीम-जाँ ख़याल हैं कुछ नीम-जाँ से लफ़्ज़
पर 'तल्ख़' चाहता है ग़ज़ल बे-मिसाल हो /9
(मौलिक व अप्रकाशित)
आ. संजय जी, क्या ही कहने। वाह!
2, 4, 7, 9 शेर ख़ासकर बहुत पसंद आए। दिली दाद कुबूलें। सादर।
आदरणीय ज़ैफ़ जी, बहुत शुक्रिया।
जनाब संजय शुक्ला जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, मुबारकबाद पेश करता हूँ I
गिरह की दाद अलग से I
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