For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा वरिष्ठ शायर ख़ुमार बाराबंकवी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है।


तरही मिसरा है:
“इक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया”
बह्र 221, 2121, 1221, 212 मफ़ऊलु फ़ायलात्, मफ़ाईलु, फ़ायलुन् है।
रदीफ़ है ‘’याद आ गया’’ और क़ाफ़िया है ‘’आ की मात्रा’’
क़ाफ़िया के कुछ उदाहरण हैं, अदा, खुदा, पता, नया, हुआ, दुखा, खरा आदि


उदाहरण के रूप में, मूल ग़ज़ल यथावत दी जा रही है।
मूल ग़ज़ल यह है:
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
तुम क्यूँ उदास हो गए क्या याद आ गया


कहने को ज़िंदगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया


वाइ'ज़ सलाम ले कि चला मय-कदे को मैं
फ़िरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया


बरसे बग़ैर ही जो घटा घिर के खुल गई
इक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया


माँगेंगे अब दुआ कि उसे भूल जाएँ हम
लेकिन जो वो ब-वक़्त-ए-दुआ याद आ गया


हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया


मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 25 अक्टूबर दिन शनिवार के प्रारंभ को हो जाएगी और दिनांक 26 अक्तूबर दिन रविवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 अक्टूबर दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

तिलक राज कपूर

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 1025

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया
क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया

जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही नहीं
जो कुछ न मेरे साथ हुआ याद आ गया

कितने दिए थे ज़ख़्म मुझे, याद है तुझे?
उन पर नमक था किसने मला, याद आ गया?

अख़्लाक़ मेरा, मेरी वफ़ा, मेरी चाहतें
कैसा दिया था इनका सिला याद आ गया?

किसने कहा था मुझसे तुझे चाहती हूँ मैं?
तुझको दिलाऊँ याद मैं या याद आ गया?

क्या ख़ूब बोलता था मुसलसल नज़र से वो
क्या कुछ न कह के उसने कहा याद आ गया

क्या भूल मैं गया हूँ ये तो याद है मुझे
पर याद ये नहीं मुझे क्या याद आ गया

जितना हसीन लगता है उतना नहीं है वो
बैठा हुआ था अच्छा भला याद आ गया

कोशिश भुलाने की तो मुझे बारहा हुई
काफ़िर नहीं था, था मैं ख़ुदा, याद आ गया

पन्ने पलट रहा था मैं जब ज़िन्दगी के तो
“इक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया”

(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए

बहुत शुक्रिया आदरणीया मंजीत कौर जी. आभारी हूँ.

आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।

बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. दिल से आभारी हूँ.

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय महेन्द्र जी। थोड़ा समय देकर  सभी शेरों को और संवारा जा सकता है। 

बहुत शुक्रिया आदरणीय गजेन्द्र जी. आभारी हूँ. यदि थोड़ा स्पष्ट सुझाव मिल जाता तो बड़ी कृपा होती. धन्यवाद!

आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।

दिल से आभारी हूँ आदरणीय दयाराम जी. बहुत शुक्रिया. 

सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया
क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया।
अच्छा मतला हुआ। ‘सुनते हैं’ का प्रयोग ठीक है और शायरी में चलन अनुसार है लेकिन यह और अधिक निजता का प्रभाव देता यदि ‘सुनता हूँ’ कहा जाता।

जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही नहीं
जो कुछ न मेरे साथ हुआ याद आ गया।
शेर में कोई दोष न होते हुए भी थोड़ी स्पष्टता आवश्यक है। ‘याद आ गया’ एक क्षणिक स्थिति है अंत: इससे कोई कारण जुड़ने पर ही यह प्रभावी रहेगा। ‘जो कुछ न मेरे साथ हुआ’ अपने आप में पर्याप्त कारण तो है लेकिन वो अचानक क्यों याद आया। ऐसे ही शेर में जब ‘जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही नहीं’ तो ‘जो कुछ न मेरे साथ हुआ’ वह याद रहने का कोई विशिष्ट कारण बनना स्पष्ट होना चाहिये।

कितने दिए थे ज़ख़्म मुझे, याद है तुझे?
उन पर नमक था किसने मला, याद आ गया?

शेर अच्छा है लेकिन शानदार शेर होने की गुँजाईश है इस बात में। उस दिशा में एक आरंभिक
उदाहरण देखें:
किसने दिए थे ज़ख़्म अगर, याद है तुझे,
कह दे नमक था किसने मला, याद आ गया?

अख़्लाक़ मेरा, मेरी वफ़ा, मेरी चाहतें
कैसा दिया था इनका सिला याद आ गया?
शेर अच्छा है, दूसरी पंक्ति को ‘कैसा दिया था तुमने सिला याद आ गया?’। इस शेर में सिला शब्द के प्रयोग पर एक बात ध्यान में रखें कि उर्दू भाषा की दृष्टि से सही शब्द ‘सिल:’ होने की बात उठ सकती है।

किसने कहा था मुझसे तुझे चाहती हूँ मैं?
तुझको दिलाऊँ याद मैं या याद आ गया?
खूबसूरत शेर हुआ।

इसी प्रकार अन्य शेर देख लें। गिरह का शेर अच्छा हुआ।

बहुत शुक्रिया आदरणीय। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। आपका बहुत-बहुत आभार।

221    2121    1221    212 

 

किस को बताऊँ दोस्त  मैं क्या याद आ गया

ये   ज़िन्दगी  फ़ज़ूल   अमा   याद   आ गया

मायावी है ये दुनिया यहाँ तेरा कोई नहीं

बेज़ार ज़िन्दगी का पता याद आ गया

हमदर्द     सारे   झूठे   यहाँ   धोखेबाज हैं

बदबख़्त ज़िन्दगी का नशा याद आ गया

वो  एन  वक़्त  पर  हमें  धोख़ा  ही  दे  रहा

इक बेवफ़ा का अहद- ए- वफ़ा याद आ गया

बदला मिज़ाज़ वक़्त का सहरा है ज़िन्दगी

देते हैं दोस्त  धोख़ा अमा याद  आ गया 

अब अपने जख़्म देते हैं हलकान हम जहाँ

हमराज़ सिर्फ़ ज़र का पता याद  आ गया

न अब कोई किसी का यहाँ दोस्त है अभी

'चेतन' ये रिश्ते झूठे हैं क्या याद  आ गया

मौलिक व अप्रकाशित 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service