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तीन वर्षों के अंतराल के बाद दिनांक 28 जनवरी 2023 को ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार भोपाल चैप्टर की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी दुष्यन्त कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय में सम्पन्न हुई। सर्वप्रथम संस्था के नए अध्यक्ष आदरणीय अशोक निर्मल जी समेत मुख्य अतिथि आदरणीय सौरभ पांडेय जी और विशिष्ट अतिथि आदरणीय तिलकराज कपूर जी ने ओबीओ भोपाल चैप्टर के आजीवन अध्यक्ष रहे, मरहूम उस्ताद ग़ज़लकार ज़हीर कुरेशी साहब को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। आदरणीय सौरभ जी ने ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की कार्यप्रणाली और सीखने सिखाने की परंपरा का संक्षिप्त विवरण दिया। आदरणीय तिलकराज कपूर जी ने गज़ल और शेरियत पर अपने विचार रखें। कार्यक्रम का संचालन बलराम धाकड़ जी द्वारा किया गया।


इसके बाद रचना पाठ का सत्र आरंभ हुआ। महावीर सिंह की ग़ज़ल से गोष्ठी की शुरुआत हुई। उन्होंने सुनाया 

"उनको अपने पराए न आये नज़र,

वो हमें आजतक आज़माते रहे"।

आ.कमलेश नूर जी द्वारा सुनाई गजल का यह शे'र बहुत पसंद किया गया -

"लोग कहते हैं मैं बाज़ार का जादूगर हूँ,

बेच देता मैं मिट्टी को सितारा कर के"

आ. संतोष खिलवड़कर जी ने जब तरन्नुम में ये ग़ज़ल सुनाई कि,

"आपसे गर मिला नहीं होता,

जो हुआ वो हुआ नहीं होता" तो माहौल ग़ज़लमय हो गया।

आदरणीय मनीष बादल जी ने अपने दोहे और ग़ज़ल सुनाई । उनके दोहे,

"जीवन की इस राह में, यही किया बस 'फील'/

ख़ुशियाँ सौ मीटर चलीं, दुःख तो मीलों मील"

ने आम मनुष्य के जीवन के दर्द को बखूबी उकेरा।

आदरणीय सीमा मिश्रा जी ने कई सुघड़ दोहे सुनाए। विभिन्न विषयों पर आधारित दोहों ने श्रोताओं को मुग्ध कर दिया।  दोहों को सभी ने बहुत सराहा,

"रोटी कपड़ा ब्याह और बूढ़ी माँ बीमार,

एक फसल के शीश पर कितने-कितने भार।"

वहीं आ. सुन्दर लाल प्रजापति जी ने ग़ज़ल सुनाई,

"मैं किसी दर्द के मेहमान से हैरान नहीं,

कोई ऐसा भी रहा है जो परेशान नहीं"।

आ. देवेश देव जी ने ग़ज़ल "अगरचे ये किसी इंसान से वादा नहीं करते, ज़ुबाँ के जो धनी हैं, बात से पलटा नहीं करते" को बहुत सराहा गया।

आ. सीमा हरिशर्मा जी ने नौजवानों को समझाते हुए सुनाया, "जान पहचान को प्यार कहना नहीं, बंधनों के बिना बँध सहना नहीं"।

 मिथिलेश वामनकर की ग़ज़ल के इस शेर बहुत सराहा गया, "विशिष्ट था मैं, अभीष्ट था मैं, ये तथ्य लेकिन अतीत का है, निवृत्त सेवा से जो हुआ तो, सकल भवन को खटक रहा हूँ"।

आ. हरि वल्लभ शर्मा जी ने सुनाया, "फ़लक से उतरा सहर आफ़ताब पानी में, जला के बैठा हो जैसे अलाव पानी में।

आ. बलराम धाकड़ जी ने जब पढ़ा कि "इरादा तो था मोहर्रम को ईद कर देंगे, तरीका उनका था, जैसे शहीद कर देंगे" तो हॉल तालियों से गूँज गया।

वरिष्ठ ग़ज़लकार आदरणीय महेश अग्रवाल जी ने अपने चिर परिचित अंदाज़ सुनाया, "किया है पाप गंगा में ज़हर मिलाने का, मगर सब चाहते हैं पुण्य भी, उसमें नहाने का"।

आदरणीया ममता बाजपेयी जी के गीत जो दर्शन को बयाँ कर रहा था "जाने ऐसी बात ही क्या, बातें क्यों चुपचाप हो गईं" को सबने बहुत सराहा।

आ. तिलकराज कपूर जी ने ग़ज़ल सुनाई, "इश्क़ की ये फुहारें तो शुरुआत है, डुबकियाँ कुछ लगा जा तुझे इश्क़ हो"।

आ. सौरभ पांडेय जी के नवगीत,"छू दो तुम फिर सुनो अनश्वर" को बहुत पसंद किया गया।

अध्यक्षता कर रहे आदरणीय अशोके निर्मल जी ने सुनाया, "पोर-पोर में एक समुन्दर, एक समंदर मन के अंदर, पुरवाई अपनों से हारी, जीते आँधी और बवंडर"।

गोष्ठी की विशेषता यह रही कि मंच का संचालन कर रहे आ. बलराम धाकड़ जी ने भी स्मृतिशेष ज़हीर कुरेशी जी को सम्मान देते हुए, सभी रचनाकारों को उनके ही शे'रों से मंच पर आमंत्रित किया।

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हार्दिक बधाई और शुभकानाएँ ।

एक लम्बे अंतराल के बाद ओबीओ के भोपाल की इकाई की संगोष्ठी आयोजित हुई. यह अवश्य था कि इस इकाई के आजीवन अध्यक्ष, जनाब जहीर कुरेशी जी, के अकाल कलवित हो जाने के पश्चात यह पहली गोष्ठी उनके स्मरण से लगातार आप्लावित होती रही.

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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"सादर"
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"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
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"अवश्य, आदरणीय."
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"रचना पर उपस्थिति तथा मूल्यवान सुझावों के लिए आपका अति आभार है सौरभ जी। आपका मार्गदर्शन तथा प्रशंसा…"
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"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर उपस्तिथि और सराहना के लिये हार्दिक आभार। "
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