बह्र- 2122 1122 1122 22(112)
ज़हर पी के मैं तेरे हाथ से मर जाऊँगा और हँसते हुए दुनिया से गुज़र जाऊँगा [1]
जो सिला मुझ को मिला है यहाँ सच बोलने से अब तो मैं झूट ही बोलूँगा जिधर जाऊँगा [2]
रात को ख़्वाब में आऊँगा फ़रिश्ते की तरह और आँखों से तेरी सुब्ह उतर जाऊँगा [3]
ख़ून छन छन के निकलता है कलेजे से मेरेरोग ऐसा है कि कुछ रोज़ में मर जाऊँगा [4]
सामना होने पे पूछेगा तू , पहचाना मुझे? गर मैं पहचान भी लू…