ख़ामोश दो किनारे ....
बरसों के बाद हम मिले भी तो किसी अजनबी की तरह हमारे बीच का मौन जैसे किसी अपराधबोध से ग्रसित रिश्ते का प्रतिनिधित्व कर रहा हो
ख़ामोशी के एक किनारे पर तुम सिर को झुकाये खड़ी हो और दूसरे किनारे पर मैं मौन का वरण किये खड़ा हूँ
क्या कभी मिट पाएँगे हम दोनों के मिलन में अवरोधक ख़ामोशी केख़ामोश दो किनारे
सुशील सरना मौलिक एवं अप्रकाशित