1222-1222-1222-1222
निगलते भी नहीं बनता उगलते भी नहीं बनता
हुई उनसे ख़ता ऐसी सँभलते भी नहीं बनता
इजारा बज़्म पे ऐसा हुआ कुछ बदज़बानों का
यहाँ रुकना भी ज़हमत है कि चलते भी नहीं बनता
जुगलबंदी हुई जब से ये शैख़-ओ-बरहमन की हिट
ज़बाँ से शे'र क्या मिसरा निकलते भी नहीं बनता
रक़ीबों को ख़ुशी ऐसी मिली हमको तबाह करके
कि चाहें ऊँचा उड़ना पर उछलते भी नहीं बनता
ख़ुद…