मन्थन कर के सिन्धु का, बँटवारे में कन्तराजनीति को क्यों दिए, बहुत विषैले दन्त।१।*दुख को तो विस्तार है, सुख में लगा हलन्तऐसी हम से भूल क्या, कुछ तो बोलो कन्त।२।*वैसे कुछ तो बाल भी, कहते सत्य भदन्तमन छोटी सी कोठरी, बातें रखे अनन्त।३।*आया है उत्कर्ष का, यहाँ न एक बसन्तकेवल पतझड़ में जिये, यूँ जीवन पर्यन्त।५।*सुख तो मुर्दा देह सा, केवल दुख जीवन्तजाने किस दिन आ स्वयं, ईश करेंगे अन्त।४।*कहलाने की हो…