व्यर्थ नहीं जाने देंगे हम ,वीरों की कुर्बानी को चढ़ सीने पर चूर करेंगे,दुश्मन की मनमानी को माफ नहीं हरगिज करना है, भीतर के गद्दारों को बनें विभीषण वैरी हित में,बुलन्द करते नारों को ll
अन्न देश का खाने वाले, दुर्जन के गुण गाते हैं जिस माटी में पले बढ़े हैं, उस पर बज्र गिराते हैं छिपे हुए कुलघाती जब ये, मिट्टी में मिल जाएंगे बचे सुधर्मी सरफरोश सब,राग वतन के गाएंगे ll
देश कुकर्मी हठधर्मी को, कर देना…