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दिनेश कुमार
  • Male
  • पुण्डरी। हरियाणा
  • India
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सतविन्द्र कुमार राणा commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा
"सुनन्दरम।"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा
"वाह दिनेश जी वाह बहुत ही सुन्दर रचना "
Monday
दिनेश कुमार posted blog posts
Sunday
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई आदरणीय निलेश सर। गिरह भी ज़बरदस्त। दिली दाद। वाह वाह वाह वाह वाह "
Nov 25
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"बहुत उम्दा ग़ज़ल के लिए दाद ही दाद। वाह वाह आ अमीर साहब। "
Nov 25
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-161
"सदा ख़ुद के विषय में सोचता हूँ मैं भाई आपका हूँ, आप सा हूँ हुईं हैं ग़लतियाँ मुझ से भी अक्सर ये किसने कह दिया मैं देवता हूँ मेरी धड़कन में सरगम गूँजती है मैं इक बज़्मे-सुख़न का दायरा हूँ मचलता सुबह से है रिन्द मुझ में मैं आजिज़ मयकशी से आ गया…"
Nov 25
दिनेश कुमार posted a blog post

ग़ज़ल -- क़दमों में तेरे ख़ुशियों की इक कहकशाँ रहे -- दिनेश कुमार

ग़ज़ल -- 221 2121 1221 212क़दमों में तेरे ख़ुशियों की इक कहकशाँ रहेबन जाए गुलसिताँ वो जगह, तू जहाँ रहेज़ालिम का ज़ुल्म ख़्वाह सदा बे-अमाँ रहेपर कोई भी ग़रीब न बे-आशियाँ रहेआ जाए जिन को देख के आँखों में रौशनीवो ख़ैर-ख़्वाह दोस्त पुराने कहाँ रहेहर दम पराए दर्द को समझें हम अपना दर्ददरिया ख़ुलूसो-मेहर का दिल में रवाँ रहेकाफ़ी नहीं है दिल में फ़लक चूमने का ख़्वाब परवाज़ हौसलों की भी ता-आसमाँ रहेमिट जाएँ दिल से हिन्दू मुसलमां के सारे फ़र्क़मरकज़ जो अपने धर्म का हिन्दोस्ताँ रहेहर बार बोल उठीं हैं ये…See More
Nov 17
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"सभी आदरणीय साथियों का दिली आभार।  हालांकि ये etiquette के खिलाफ़ है कि आप सब का अलग अलग आभार व्यक्त न करना। आप अन्यथा न लीजिएगा। मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती। मुशायरे में अन्य साथियों की ग़ज़ल पर टिप्पणी न कर पाने का भी अफ़सोस है। सादर 🙏"
Sep 28
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"हर काम टालने की ये लत खा गई मुझे  सब कुछ मियाँ गँवा के समझ आ गई मुझे मैं मुस्कुराने का ही सबब दूँढता रहा  औ'र रंजो-ग़म की ज़िंदगी ठुकरा गई मुझे पानी में रह के बैर मगर से कभी न कर मेरी अना ये बात भी समझा गई मुझे लफ़्ज़ों में मैं…"
Sep 28
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-156
"आदरणीय अशोक सर जी।  जो आपने उदाहरण दिए हैं, उन में तो कुछ  भी दोष नहीं है।  लेकिन 2112--1212 ///// 2112--1212 bahr में  पहले 2112--1212 के बाद pause आना चाहिए सादर। "
Jun 23
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-156
"बहुत ख़ूब आदरणीय भाई निलेश जी। दिली दाद, वाह वाह वाह वाह मतला बहुत ज़बरदस्त हुआ है। क्या कहने। दफा, तैयार,  के वज़न पर आपका जवाब जानकारी बढाएगा। सादर"
Jun 23
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल ( दिनेश कुमार )
"आ. भाई दिनेश जी, अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
May 28
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"बहुत ख़ूब आ रवि शुक्ला जी। बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाद। वाह वाह "
May 27
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"नमस्कार आदरणीय समर सर। आप हमेशा स्वस्थ रहें। "
May 27
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आ अनीस साहब। ग़ज़ल का बढ़िया प्रयास। वाह 1)काम पर घर से जब निकलते हैं दिन भर अपमान ही निगलते हैं Subject का अभाव लगा मुझे। 2)मैं तो ख़ुद से ही ख़ुश नहीं हूँ फिर किसलिए आप मुझ से जलते हैं 3) सब की नज़रों में मैं ही रहता हूँ  आप जब साथ मेरे चलते…"
May 27
दिनेश कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आ अशोक सर, आपको मालूम ही है, मेरी जानकारी काम चलाऊ ही है बस। शब्दों को जोड़ तोड़ के bahar में फिट करना ही थोड़ा बहुत आया है। आपकी बात से इन्कार नहीं। सादर।"
May 27

Profile Information

Gender
Male
City State
कैथल हरियाणा
Native Place
कैथल
Profession
अध्यापक

दिनेश कुमार's Blog

ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा

1212-- 1122-- 1212-- 22

अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा

परिंदे नीड़ में सहमे हैं, जाने डर कैसा

ख़ुद अपने घर में ही हव्वा की जात सहमी है 

उभर के आया है आदम में जानवर कैसा

अधूरे ख़्वाब की सिसकी या फ़िक्र फ़रदा की

हमारे ज़हन में ये शोर रात-भर कैसा

सरों से शर्मो हया का सरक गया आंचल 

ये बेटियों पे हुआ मग़रिबी असर कैसा

वो ख़ुद-परस्त था, पीरी में आ के समझा है 

जफ़ा के पेड़ पे रिश्तों का अब…

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Posted on December 3, 2023 at 10:00am — 2 Comments

ग़ज़ल -- क़दमों में तेरे ख़ुशियों की इक कहकशाँ रहे -- दिनेश कुमार

ग़ज़ल -- 221 2121 1221 212

क़दमों में तेरे ख़ुशियों की इक कहकशाँ रहे

बन जाए गुलसिताँ वो जगह, तू जहाँ रहे

ज़ालिम का ज़ुल्म ख़्वाह सदा बे-अमाँ रहे

पर कोई भी ग़रीब न बे-आशियाँ रहे

आ जाए जिन को देख के आँखों में रौशनी

वो ख़ैर-ख़्वाह दोस्त पुराने कहाँ रहे

हर दम पराए दर्द को समझें हम अपना दर्द

दरिया ख़ुलूसो-मेहर का दिल में रवाँ रहे

काफ़ी नहीं है दिल में फ़लक चूमने का ख़्वाब 

परवाज़ हौसलों…

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Posted on November 17, 2023 at 8:30am

ग़ज़ल ( दिनेश कुमार )

2122--1122--1122--22

मेरी क़िस्मत में अगरचे नहीं धन की रौनक़

सब्र-ओ-तस्लीम से हासिल हुई मन की रौनक़



एक दूजे की तरक़्क़ी में करें हम इमदाद

भाई-चारा ही बढ़ाता है वतन की रौनक़



किसको फ़ुर्सत है जो देखे, तेरी सीरत का जमाल

हर तरफ़ जल्वा-नुमा अब है बदन की रौनक़



मुश्किलें कितनी भी पेश आएं तेरी राहों में

जीत की शक्ल में चमकेगी जतन की रौनक़



ये परखते हैं ग़ज़लगो के तख़य्युल की उड़ान

सामईन अस्ल में हैं बज़्म-ए-सुख़न की…

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Posted on May 17, 2023 at 10:30am — 4 Comments

ग़ज़ल -- फ़लक में उड़ने का क़ल्बो-जिगर नहीं रखता / दिनेश कुमार

1212---1122---1212---22

.

फ़लक में उड़ने का क़ल्बो-जिगर नहीं रखता

मैं वो परिन्दा हूँ जो बालो-पर नहीं रखता

.

न चापलूसी की आदत, न चाह उहदे ( पदवी ) की

फ़क़ीर शाह के क़दमों में सर नहीं रखता

.

उरूज और ज़वाल एक से हैं जिसके लिये

वो हार जीत का दिल पर असर नहीं रखता

.

मिला नसीब से जो कुछ भी, वो बहुत है मुझे

पराई चीज़ पे मैं बद-नज़र नहीं रखता

.

नशा दिमाग़ पे दौलत का जिसके जन्म से हो

वो अपने पाँव कभी फ़र्श पर नहीं रखता

.

वो इस…

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Posted on November 16, 2018 at 3:04pm — 8 Comments

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Comment Wall (7 comments)

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At 8:41am on June 20, 2016, सुरेश कुमार 'कल्याण' said…
आदरणीय श्री दिनेश कुमार जी सर्वश्रेष्ठ रचना के लिए हार्दिक बधाई।
At 2:19pm on June 18, 2016, Dr Ashutosh Mishra said…

आदरणीय दिनेश जी आपकी रचना को यह सम्मान मिलना ही था इस उपलब्धि पर आपको हार्दिक बधाई

At 1:01pm on June 18, 2016,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय दिनेश कुमार जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी  ग़ज़ल - सर से छप्पर ले गया को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |

आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

At 8:03pm on February 20, 2015, khursheed khairadi said…

आदरणीय दिनेश जी ,आपकी सक्रियता निर्विवाद रूप से स्वीकार्य है |मेरी ग़ज़लों पर भी आपका स्नेह निरंतर बरसता रहा है |आपको महीने का सक्रिय सदस्य चुने जाने पर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है |आपकी उत्कृष्ट रचनाओं ने मंच को साहित्य से परिपूर्ण किया है और आगे भी करती रहेगी |सादर अभिनंदन |

At 1:19pm on February 18, 2015, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव said…

AADARNEE DINESH JEE

सक्रिय सदस्य चुने जाने पर आपको हार्दिक बधाई i सादर i

At 10:53pm on February 15, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आदरणीय दिनेश भाई जी "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) चुने जाने पर बहुत बहुत  बधाई स्वीकार करें |

At 9:07pm on February 15, 2015,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय
दिनेश कुमार जी,
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करें | प्रशस्ति पत्र उपलब्ध कराने हेतु कृपया अपना पता एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें | ध्यान रहे मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई है |
हम सभी उम्मीद करते है कि आपका सहयोग इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा |
सादर ।
आपका
गणेश जी "बागी"
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन

 
 
 

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