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Mahendra Kumar
  • Male
  • India
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Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-149
"अलग रंग की ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। आदरणीय समर कबीर सर से सहमत।"
Nov 26, 2022
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-149
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय अमीरुद्दीन जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। आदरणीय समर कबीर सर से सहमत।"
Nov 26, 2022
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-149
"हम बात को घुमा के नहीं कहते हैं कभीसीधा जवाब देंगे जो सीधा सवाल हो   ...बहुत ख़ूब। बढ़िया ग़ज़ल से मुशायरे का आग़ाज़ करने के लिए ढेरों बधाई स्वीकार करें आ. रिचा जी। आदरणीय समर कबीर सर का सुझाव उम्दा है।"
Nov 25, 2022
Mahendra Kumar commented on Mahendra Kumar's blog post ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई
"जी सर, सही कह रहे हैं। यह तीसरी ग़ज़ल है जिसमें ऐसा हुआ है। एक ग़ज़ल बहुत पहले की है और दो अभी की। पहले वाली ग़ज़ल में चूँकि मफ़हूम टकरा रहा था तो उस शेर को ग़ज़ल से हटा दिया। अभी की दो ग़ज़लों में से एक का मिसरा जो मेरे ख़याल में आया था उसे एक दूसरे शाइर ने…"
Nov 10, 2022
Samar kabeer commented on Mahendra Kumar's blog post ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई
"//एक जिज्ञासा है कि अगर ऐसे मिसरे के ऊला (या सानी) से मूल से अलग एक दूसरे तरह का शेर उभर कर आ रहा हो तो उसे रखना चाहिए या नहीं जैसा कि इस शेर के ऊला में है// ये तो ज़ाहिर है कि पूरा का पूरा मफ़हूम शे'र मेंनहीं है, सिर्फ़ एक ही मिसरा किसी दूसरे से…"
Nov 10, 2022
Mahendra Kumar posted a blog post

ग़ज़ल : ज़िन्दगी की है ये मेरी दास्ताँ

अरकान : 2122 2122 212ज़िन्दगी की है ये मेरी दास्ताँतुहमतें, रुसवाइयाँ, नाकामियाँआए थे जब हम यहाँ तो आग थेराख हैं अब, उठ रहा है बस धुआँदिल लगाने की ख़ता जिनसे हुईउम्र भर देते रहे वो इम्तिहाँसोचता हूँ क्या उसे मैं नाम दूँजो कभी था तेरे मेरे दरमियाँमैं अकेला इश्क़ में रहता नहींसाथ रहती हैं मेरे तन्हाइयाँकहने को तो कब से मैं आज़ाद हूँपाँव में अब भी हैं लेकिन बेड़ियाँजीते जी लेता नहीं कोई ख़बरएक दिन ढूँढेंगे सब मेरे निशाँ(मौलिक व अप्रकाशित)See More
Nov 10, 2022
Mahendra Kumar commented on Mahendra Kumar's blog post ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी। आभारी हूँ।"
Nov 10, 2022
Mahendra Kumar commented on Mahendra Kumar's blog post ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय ज़ैफ़ जी। हार्दिक आभार।"
Nov 10, 2022
Mahendra Kumar commented on Mahendra Kumar's blog post ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई
"आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। बहुत शुक्रिया।"
Nov 10, 2022
Mahendra Kumar commented on Mahendra Kumar's blog post ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर सर। आप सही कह रहे हैं। एक जिज्ञासा है कि अगर ऐसे मिसरे के ऊला (या सानी) से मूल से अलग एक दूसरे तरह का शेर उभर कर आ रहा हो तो उसे रखना चाहिए या नहीं जैसा कि इस शेर के ऊला में है। सादर।"
Nov 10, 2022
Mahendra Kumar commented on Mahendra Kumar's blog post ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई
"दिल से आभारी हूँ आदरणीय अमीरुद्दीन जी। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
Nov 10, 2022
Mahendra Kumar commented on Mahendra Kumar's blog post ग़ज़ल : ज़िन्दगी की है ये मेरी दास्ताँ
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर सर। दिल से आभारी हूँ।"
Nov 10, 2022
Ashok Kumar Raktale commented on Mahendra Kumar's blog post ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी सादर, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. सभी अशआर उम्दा हैं. बहुत बधाई स्वीकारें. सादर"
Nov 8, 2022
Zaif commented on Mahendra Kumar's blog post ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई
"इन रईसों के शौक़ की ख़ातिर मरता हो तो मरा करे कोई बेवफ़ा मुझको कह रहा है वो सामने आइना करे कोई .. वाह। आदरणीय महेंद्र जी, क्या ही कहने। लाजवाब ग़ज़ल।।"
Nov 8, 2022
Mahendra Kumar commented on Manan Kumar singh's blog post कफनचोर(लघुकथा)
"आदरणीय मनन जी, लघुकथा के भाव अच्छे हैं जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है। लोगों के साथ ठगी करने वाले बहुत शातिर होते हैं। कर्ज़ देने की तिथि बाद में और लौटाने की तिथि वे पहले लिखेंगे, इतनी छोटी ग़लती असम्भव भले न सही पर अस्वाभाविक ज़रूर लगती है। उम्मीद…"
Nov 7, 2022
Mahendra Kumar commented on DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU''s blog post आज मैखाने का दस्तूर अज़ब है साक़ी |
"अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय डॉ. बैजनाथ जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।"
Nov 7, 2022

Profile Information

Gender
Male
City State
Allahabad
Native Place
Fatehpur

Mahendra Kumar's Blog

ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई

अरकान : 2122 1212 22/112

आशिक़ों का भला करे कोई

मौत आए, दुआ करे कोई

पाँव में फूल चुभ गया उनके

जाए जाए दवा करे कोई

हाल पे मेरे रोता है शब भर

सुब्ह मुझ पर हँसा करे कोई

फ़र्क़ ज़ालिम पे कुछ नहीं पड़ता

चाहे कुछ भी कहा करे कोई

ये नहीं होता, ये नहीं होगा

हम कहें और सुना करे कोई

इन रईसों के शौक़ की ख़ातिर

मरता हो तो मरा करे कोई

बेवफ़ा मुझको कह रहा है…

Continue

Posted on November 4, 2022 at 1:37pm — 12 Comments

ग़ज़ल : ज़िन्दगी की है ये मेरी दास्ताँ

अरकान : 2122 2122 212

ज़िन्दगी की है ये मेरी दास्ताँ

तुहमतें, रुसवाइयाँ, नाकामियाँ

आए थे जब हम यहाँ तो आग थे

राख हैं अब, उठ रहा है बस धुआँ

दिल लगाने की ख़ता जिनसे हुई

उम्र भर देते रहे वो इम्तिहाँ

सोचता हूँ क्या उसे मैं नाम दूँ

जो कभी था तेरे मेरे दरमियाँ

मैं अकेला इश्क़ में रहता नहीं

साथ रहती हैं मेरे तन्हाइयाँ

कहने को तो कब से मैं आज़ाद हूँ

पाँव में अब भी हैं लेकिन…

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Posted on October 23, 2022 at 6:30am — 13 Comments

ग़ज़ल : यही इक बात मैं समझा नहीं था

बह्र : 1222     1222     122

यही इक बात मैं समझा नहीं था

जहाँ में कोई भी अपना नहीं था

किसी को जब तलक चाहा नहीं था

ज़लालत क्या है ये जाना नहीं था

उसे खोने से मैं क्यूँ डर रहा हूँ

जिसे मैंने कभी पाया नहीं था

न बदलेगा कभी सोचा था मैंने

बदल जाएगा वो सोचा नहीं था

उसे हरदम रही मुझसे शिकायत

मुझे जिससे कोई शिकवा नहीं था

उसी इक शख़्स का मैं हो गया हूँ

वही इक शख़्स जो मेरा नहीं…

Continue

Posted on October 10, 2022 at 6:27pm — 16 Comments

ग़ज़ल : इक दिन मैं अपने आप से इतना ख़फ़ा रहा

अरकान : 221 2121 1221 212

इक दिन मैं अपने आप से इतना ख़फ़ा रहा

ख़ुद को लगा के आग धुआँ देखता रहा

दुनिया बनाने वाले को दीजे सज़ा-ए-मौत

दंगे में मरने वाला यही बोलता रहा

मेरी ही तरह यार भी मेरा अजीब है

पहले तो मुझको खो दिया फिर ढूँढता रहा

रोता रहा मैं हिज्र में और हँस रहे थे तुम

दावा ये मुझसे मत करो, मैं चाहता रहा

कुछ भी नहीं कहा था अदालत के सामने

वो और बात है कि मैं सब जानता…

Continue

Posted on December 10, 2019 at 10:00am — 4 Comments

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At 9:45am on January 27, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय महेंद्र जी
बहुत शुक्रिया
 
 
 

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"जी, सादर आभार।"
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर"
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय."
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"लक्ष्मण भाई पिछले आयोजन में यही भूल मुझसे हुई थी। तो इस संबंध में थोड़ी जानकारी जुटाई थी। वो भी OBO…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"रचना पर उपस्थिति तथा मूल्यवान सुझावों के लिए आपका अति आभार है सौरभ जी। आपका मार्गदर्शन तथा प्रशंसा…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर उपस्तिथि और सराहना के लिये हार्दिक आभार। "
Sunday

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