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Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आदरणीय दंडपाणि जी अच्छे शेर कहे आपने तरही मिसरे पर मुबारक बाद पेश है"
10 minutes ago
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आदाणीय मुनीश जी तरही मिसरे पर ग़ज़ल की उम्दा कोशिश हुई है बधाई ।"
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Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आदाणीय चेतन प्रकाश जी तरही मिसरे पर उम्दाकोशिश हुई है बधाई ।"
13 minutes ago
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आदरणीय अमीर साहब  उम्दा ग़ज़ल कही आपने दूसरा शेर रवायती अंदाज में बहुत अच्छा लगा छठे शेर में कौन बहका गई तक मेरी पहुंच नहीं हुई ।  और आठवां शेर का उला बाकी मिसरों की तरह शानदार नहीं लगा बहर हाल उम्दा अशआार के लिये दिली मुबारक बाद कुबूल…"
14 minutes ago
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आदरणीय संजय जी ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें 5 वें शेर के उला मिसरे में की को कि करने की ओर आदरणीय समर सर इशारा कर चुके हैं । और तीसरे शेर कर रवानी पर आदरणीय अमित जी बात कर चुके है । ग़ज़ल के लिये पुनः बधाई । सादर"
18 minutes ago
Ravi Shukla commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल (उम्र मिरी यूँ रही गुज़र)
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई "
Aug 8
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - नशे में लाख रहूँ पर बहक नहीं सकता
"आदरणीय नीलेश जी शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर बधाई कुबूल करें "
Aug 8
Ravi Shukla commented on AMAN SINHA's blog post ढूँढता हूँ कब से
"आदरणीय अमन मंच पर आज जितनी रचनाएं अभी तक पढ़ कर टिप्पणी कर पाया हूँ उनमें से किसी में भी रचनाासे पूर्व उसका अरकान / बहर लिखी नहीं दिखाई  दी मुझे जिससे कुछ अनुमान नहीं हो पाया आपकी की रचना को किस विधा में रखा जाए । प्रयास के  लिये बधाई "
Aug 8
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लोक को बाँटा है ऐसे इस सियासत ने यहाँ (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण जी सामयिक विषय पर उम्दा शेर कहे आपने बधाई "
Aug 8
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - दफ़्तर में तू पहला दिख
" आदरणीय नीलेश जी छोटी बहर में अच्छे भाव के शेर कहे है आपने बधाई "
Aug 8
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- चाहें किसी को और निबाहें किसी से हम
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी बहुत ख़ुब ग़ज़ल कही है एक से बढ़कर एक शेर हुए है । तीसरा शेर खास तौर पर पसंद आाया । इस उम्दा गजल पर शेर दर शेर मुबारक कबाद कुबूल करे । सादर "
Jun 28
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय अनीस अरमान जी मुशाइरे मे  इस उम्दा गज़ल के लिए बधाई आपको"
May 27
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय अजय जी गजल का बहुत अच्छा प्रयास किया है आपने मुशायरे में इसके साथ शिरकत करने के लिए हार्दिक बधाई। दिख दिखा दिखता ऐसे शब्द आम बोलचाल के हैं ग़ज़ल में इनके प्रयोग से बचना चाहिए सहीह लफ्ज़  दिखाई है ।  झुंझलते काफीया पर कुछ संशय है…"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय अजय जी गजल की सराहना के लिए हार्दिक आभार"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"हार्दिक आभार आदरणीय नीलेशजी। आदरणीय समर साहब की प्रेरणा से पुनः सक्रिय होने का प्रयास कर रहा हूं कुछ भोपाल उत्सव का भी सक्रियता में सहयोग है"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"सज सँवर के वो जब निकलते हैंकितने अरमान हाथ मलते है आपके पास है जवाब इसकाफूल काँटो में कैसे पलते हैं अब न होगी ग़ज़ल तुम्हारे बादहम भी इस बज़्म से निकलते हैं सिर्फ़ मौसम ही क्यूँ हए बदनामलोग भी तो बहुत बदलते हैं आशनाई क़ज़ा से हो जिनकीवो निडर होके जग…"
May 26

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Ravi Shukla's Blog

तरही ग़ज़ल फ़िराक़ साहब के मिसरे पर

थी यही फूल की किस्मत कि बिखर जाना था,

ये कहाँ तय था कि जुल्फों में ठहर जाना था।

मौज ने चाहा जिधर मोड़ दिया कश्ती को,

"मुझको ये भी न था मालूम किधर जाना था"।

जो थे साहिल पे तमाशाई यही कहते थे,

डूबने वाले को अब तक तो उभर जाना था।

बज़्मे अग्यार में है जलवा नुमाई तेरी ,

इस तग़ाफ़ुल पे तेरे मुझको तो मर जाना था।

गर्द हालात की चहरे पे है,लेकिन तुझको,

आईना बन के मैं आया तो सँवर जाना था।

सुब्ह का भूला…

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Posted on March 1, 2019 at 4:30pm — 8 Comments

गीत दफ्तर पर

सिस्टम से अब और निभाना मुश्किल है,

आँसू पीकर हँसते जाना मुश्किल है।।

लंबे चौड़े दफ्तर हैं पर छोटी सोच लिए।

भाँग कुएँ में मिली हुई है पानी कौन पिए।

कागज के रेगिस्तानों में भटक रहा,

मृग तृष्णा से प्यास बुझाना मुश्किल है।

भावुकता में मैदां छोड़ूँ क्या होगा।

कोई और यहाँ आकर रुसवा होगा।।

अजगर बन कर पड़ा रहूँ कैसे संभव,

जोंकों को भी खून पिलाना मुश्किल है।

लानत और मलामत का है भार बहुत।

न्याय नहीं निर्णय का शिष्टाचार…

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Posted on November 16, 2018 at 9:48pm — 5 Comments

तरही ग़ज़ल : साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

2122  1122  1122  22/112

कोई पूछे तो मेरा हाल बताते भी नहीं,

आशनाई का सबब सबसे छुपाते भी नहीं।

शेर कहते हैं बहुत हुस्न की तारीफ़ में हम

पर कभी अपनी ज़बाँ पर उन्हें लाते भी नहीं।

जब भी देते हैं किसी फूल को हँसने की दुआ,

शाख़ से ओस की बूंदों को गिराते भी नहीं।

ये तुम्हारी है अदा या है कोई मजबूरी,

प्यार भी करते हो और उसको जताते भी नहीं।

सिर्फ़ अल्फ़ाज़ से पहचान…

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Posted on August 29, 2018 at 4:00pm — 17 Comments

गीत : एक भारत श्रेष्ठ भारत

एक भारत श्रेष्ठ भारत आइये मिलकर बनाएं

देश का  सम्मान गौरव लक्ष्य हासिल कर बढ़ाएं

 

शांति के हम पथ प्रदर्शक ध्वज अहिंसा ले चलेंगे

विश्‍व गुरु बन कर पुन: संस्थापना सच की करेंगे

दें नहीं उपदेश अपने आचरण से  कर दिखाएं

 

धर्म पूजा, जाति भाषा, वेश भूषा, बोलियाँ सब

एकता के सूत्र में बंध कर चली है टोलियाँ सब

संगठन में शक्ति है, ऐसी लिखें फिर से कथाएं

 

रेल का हमको दिखाई दे रहा है पथ समांतर

मूल में इसके छिपा है साथ…

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Posted on July 25, 2017 at 11:00am — 8 Comments

Comment Wall (16 comments)

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At 11:59am on October 16, 2020, बसंत कुमार शर्मा said…

सादर प्रणाम स्वीकारें आदरणीय, सादर स्नेह बनाये रखें, अच्छा लगा आपकी मित्रता रिक्वेस्ट देख करमैं भी रेल परिवार से ही हूँ 

वर्तमान में उप मुख्य सतर्कता अधिकारी के पद कार्य कर रहा हूँ. 

जबलपुर पश्चिम मध्य रेल 

At 7:49am on June 29, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय रवि शुक्ला जी आदाब , बहुत शुक्रिया मेरा हौसला बढ़ने के लिए
At 4:12pm on June 27, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय रवि शुक्ल जी आदाब, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें
At 8:08am on January 27, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय रवि जी
बहुत बहुत शुक्रिया
At 12:59am on October 5, 2018, mirza javed baig said…

मोहतरम जनाब रविरवि शुक्ला जी आदाब 

मुझे अपने फ्रेंड्स लिस्ट में जोड़ने के लिए शुक्रिया 

आपसे बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलेगा। 

At 9:25am on September 9, 2018, Ajay Tiwari said…

आदरणीय रवि जी,

आपकी मैत्री हासिल करना किसका सौभाग्य नहीं होगा. और मुझे ख़ुशी है कि ये सौभाग्य अब मुझे भी प्राप्त है. हार्दिक आभार.

At 5:11pm on January 10, 2018, dandpani nahak said…
आदरणीय रवि शुक्ला जी प्रणाम
प्रथम तो मैं देरी से आपका आभार व्यक्त करते हुए शर्मिंदा हूँ और माफ़ी चाहता हूँ अपने मेरी पहली ही ग़ज़ल पढ़ी तथा इस पर अपने विचार व्यक्त किये मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ मेरी पहली ही ग़ज़ल में बहुत ख़ामियां है मुझे भरोषा है की आप जैसे गुणीजनों के सानिध्य में मैं कुछ सीख सकूँगा
आपका बहुत बहुत आभार
At 3:39pm on April 5, 2017, Gurpreet Singh jammu said…

आदरणीय रवि शुक्ला जी आपसे बहुत अच्छी चैटिंग हो रही थी... लेकिन ऐन वक़्त पर मेरे नेट ने धोखा दे दिया ( ये अक्सर मेरे साथ ऐसा ही करता है ) और आप से  बात चीत बीच में ही कट गई ,,, खैर फिर मौका मिला तो बात आगे बढ़ांएंगे,,, संपर्क करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 

At 11:45pm on July 16, 2016,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय रवि शुक्ल जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी  ग़ज़ल - व्यापार होना चाहिए को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |

आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

At 8:23pm on December 17, 2015, Nirdosh Dixit said…
प्रणाम स्वीकारें आदरणीय शुक्ल जी, सादर आभार आपका।
 
 
 

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