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पहले सींचा नेह से, बाद सौंप दी पीर ।निकली मेरी प्रेम में, दगाबाज तकदीर ।।अरुन अनन्त …Continue
Started this discussion. Last reply by Sushil Sarna Oct 21, 2020.
भाग - २=====’दूसरा सप्तक’ की भूमिका लिखते समय अज्ञेय ने कहा है, कि, ’प्रयोग का कोई वाद नहीं है । हम वादी नहीं रहे, न ही हैं, न प्रयोग अपने आप में इष्ट या साध्य है ।’ वे आगे कहते हैं - ’जो लोग प्रयोग…Continue
Started this discussion. Last reply by Saurabh Pandey Sep 6, 2016.
मानवीय विकासगाथा में काव्य का प्रादुर्भाव मानव के लगातार सांस्कारिक होते जाने और संप्रेषणीयता के क्रम में गहन से गहनतर तथा लगातार सुगठित होते जाने का परिणाम है । मानवीय संवेदनाओं को सार्थक अभिव्यक्ति…Continue
Started this discussion. Last reply by Kalipad Prasad Mandal Sep 26, 2016.
सुपरिचित साहित्यिक-संस्था ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम (ओबीओ) के लखनऊ चैप्टर ने चैप्टर के संयोजक डॉ. शरदिन्दु मुकर्जी के निर्देशन में दिनांक 22 मई 2016 को स्थानीय डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ, लोक निर्माण…Continue
Started this discussion. Last reply by Saurabh Pandey Jun 1, 2016.
हमें अबूझा ही लगा, लोकतंत्र का रूप ..
रात-रात भर मंत्रणा, करती व्याकुल धूप !
कैसे कितना कौन कब, किसे लगाता तेल
गणना-गणित चुनाव का, भितरघात-धुरखेल
बहुत कमीने रहनुमा, क्या हम बाँधें आस
इंद्रमंच पर बैठ कर, करते हैं बकवास ।।
दिखा-दिखा वह तर्जनी, पुलक रहा हर बार
मालिक हम भी जानते, क्या होती सरकार !!
राजा-राजा खेलते, बेवकूफ हम रंक !
उँगली थामे सोचिए, दाग लगा या डंक ?
***
सौरभ
(मौलिक और…
ContinuePosted on November 3, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
दिन भर का उत्साह है, पन्द्रह दिन का प्यार
हिंदी हित कुछ झूठ-सच, कुछ भावुक उद्गार ..
सरकारी है घोषणा, सजे-धजे हैं मंच
'हिंदी भाषा राष्ट्र की', दिन भर यही प्रपंच
'हिंदी-हिंदी' कर सभी, बजा रहे निज गाल
हम भकुआए देखते.. 'हिंदी-दिवस' उबाल
माँ-बोली को जानिए ज्यों माता का प्यार
फिर हिंदी की बाँह धर.. सीखें जग-व्यवहार !
***
(मौलिक और अप्रकाशित)
Posted on September 14, 2020 at 10:11am — 6 Comments
२१२२ १२१२ २२/११२
अब दिखेगी भला कभी हममें..
आपसी वो हया जो थी हममें ?
हममें जो ढूँढते रहे थे कमी
कह रहे, ’ढूँढ मत कमी हममें’ !
साथिया, हम हुए सदा ही निसार
पर मुहब्बत तुम्हें दिखी हममें ?
पूछते हो अभी पता हमसे
क्या दिखा बेपता कभी हममें ?
पत्थरों से रही शिकायत कब ?
डर हथेली ही भर रही हममें !
चीख भरने लगे कलंदर ही..
मत कहो, है बराबरी हममें !
नूर ’सौरभ’…
ContinuePosted on December 25, 2019 at 11:30pm — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
सिरा कोई पकड़ कर हम उन्हें फिर से तलाशेंगे
इन्हीं चुपचाप गलियों में जिये रिश्ते तलाशेंगे
अँधेरों की कुटिल साज़िश अगर अबभी न समझें तो
उजालों के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे
कभी उम्मीद से भारी नयन सपनों सजे तर थे
किसे मालूम था ये ही नयन सिक्के तलाशेंगे !
दिखे है दरमियाँ अपने बहुत.. पर खो गया है जो
उसे परदे, भरी चादर, रुँधे तकिये तलाशेंगे
हृदय में भाव था उसने निछावर…
ContinuePosted on October 27, 2019 at 12:00pm — 12 Comments
आदरणीय बन्धु सादर अभिवादन । जन्मदिन की असीम हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जन्म दिन की हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ पांडे जी।
आदरणीय सौरभ पांडे जी को जन्म दिवस की हार्दिक बधाई एवम असीमित शुभ कामनायें।
नूतन वर्ष 2016 आपको सपरिवार मंगलमय हो। मैं प्रभु से आपकी हर मनोकामना पूर्ण करने की कामना करता हूँ।
सुशील सरना
आदरणीय सौरभ जी, आप जी को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई हो
आदरणीय सौरभ जी नमस्कार --- सर आपके द्वारा इस दोहे को "मेघ मिलें जब मेघ से, शोर करें घनघोर,प्रेम गीत बजने लगें, सृष्टि में चहूँ और"
वैधानिक रूप से सही नहीं माना। द्वितीय पंक्ति के सम चरण में 'चहूँ' को यदि 'चहुं ' से सही कर दिया जाए तो मात्रिक ह्रास नहीं होगा और त्रुटि सही हो जाएगी। क्या यही वैधानिक त्रुटि है या कोई ओर ?कृपया मेरी जिज्ञासा को शांत करें ताकि भविष्य में इस तरह की त्रुटि से बचा जा सके।
सादर …
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