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Sheikh Shahzad Usmani
  • Male
  • SHIVPURI M.P.
  • India
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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक ईश्वर और वनस्पति , कीड़े -मकोड़ों, जीव-जंतुओं आदि की प्रजा में से कुछ 'चिकित्सक' और 'शोधकर्ता' इंसानों के एक महापर्व पर आपस में…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। मुझे ऐसा लगा कि कुछ संवाद सहज बोलचाल वाले शब्दों में या फिर स्थानीय/क्षेत्रीय बोली में लिखे जायें, तो रचना और अधिक आकर्षक और…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। दीपोत्सव महापर्व पर तहेदिल बहुत-बहुत मुबारकबाद और शुभकामनाएं आप सभी परिवारजन और मित्रगण को हम सब की तरफ़ से ।"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक और सेना की नौकरी के अधूरे ख़्वाब से अविवाहित रहने तक की विसंगतियों वाली बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी। अंतिम पंक्ति को…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है? फटाफट दायें-बायें हाथ मार और छुट्टी ले काम से, मेरी तरह!""सड़कों और पार्क कीउन जगहों पर ध्यान से झाडू लगाती हूॅं बिट्टो, जहॉं तफ़री-मस्ती…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब।"
Sep 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी।"
Sep 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदाब। दोस्ती और दुश्मनी भी जीवन के साथी होते हैं बारी-बारी से।‌ सच्चे दोस्त ही साथी होते हैं। विषय को एक दूसरे कोण से लेते हुए बढ़िया रचना।‌ हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। कुछ टंकण त्रुटियाॅं रह गई हैं।"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब तेजवीर सिंह साहिब प्रोत्साहन और मार्गदर्शन हेतु।"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"साथ थी! (लघुकथा): उनके दोनों बच्चे विदेश में अपने -अपने परिवारों के साथ वहां की जीवन शैली में किसी तरह जी रहे थे। यहॉं ये दोनों पति-पत्नी यहॉं की पारम्परिक जीवनशैली में किसी तरह जी रहे थे। वहॉं वालों की अपनी अच्छी या बुरी मिलीजुली परिस्थितियाॅं…"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदाब। विषयांतर्गत देशभक्ति और राष्ट्रसेवा की महानता और मार्मिकता का कथ्य समेटते हुए सच्चे प्रेम की भावपूर्ण रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता जी। शादी के कार्ड खोलते हुए दिल को  के कार्ड/परतें खोलने फ्लैशबैक का बढ़िया प्रयोग। लेकिन सब…"
Aug 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदाब। प्रदत्त विषयांतर्गत एक गंभीर और चुनौतीपूर्ण मुद्दे और विसंगति पर बढ़िया प्रस्तुति और गोष्ठी के आग़ाज़ हेतु हार्दिक बधाई मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब। पाठक को झकझोर कर रख दिया। एक साथ कई ज्वलंत विचार उत्पादक कथ्य। हालाॅंकि अभी यह ऐसा ड्राफ्ट…"
Aug 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-112
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। ध्यान आकृष्ट कराने हेतु शुक्रिया।"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-112
"सादर नमस्कार।‌नारी/मॉं- विमर्श की एक बहुत बढ़िया उम्दा रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। अंतिम पंक्ति विचारोत्तेजक है। शीर्षक भी। शैली का बढ़िया चयन।"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-112
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब।"
Jul 31

Profile Information

Gender
Male
City State
Shivpuri M.P.
Native Place
Shivpuri
Profession
Radio Announcer
About me
A Private School- teacher, Freelancer and a Casual Radio Announcer. Simlple living, high thinking, fond of reading and writing.

Sheikh Shahzad Usmani's Blog

मुंगेरीलाल के वैक्सीन सपने (कहानी) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी :

मुंगेरीलाल और कोरोनाकाल... सबके बहुत बुरे हालचाल! लॉकडाउन पर लॉकडाउन... घर में क़ैद सब जॉब डाउन, रोज़गार डाउन! बेचारे मुंगेरीलाल ने अपनी कम्पनी की नौकरी छोड़कर बड़ी मुसीबत कर ली थी सात साल पहले। उनका काम और रुझान दिलचस्प और संतोषजनक था, फ़िर भी सपनों और दिवास्वप्नों में खोये रहने और बड़ी-बड़ी बातें फैंकने के कारण दफ़्तर, घर, बाज़ार और ससुराल सभी जगह लोग उनका मज़ाक उड़ा-उड़ा कर मौज-मस्ती कर लिया करते थे। उन सबकी बातों को मुंगेरीलाल कभी हल्के में, तो कभी बहुत गंभीरता से ले लेते थे।

एक बार…

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Posted on November 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments

गार्गी की बार्बी (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

भगवान देता है, तो छप्पर फाड़ कर देता है। लेता है, तो एक झटके में ले लेता है। देकर ले लेता है, तो हँसाने के बाद रुला-रुला कर। राजन, रंजीता और गंगा का ज़िन्दगीनामा भी यही साबित करता रहा; गार्गी और गार्गी की बार्बी का भी! बार्बी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; बार्बी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो उसकी मम्मी पर निर्भर थी। उसकी मम्मी ने भी तो न सोचा था वह सब। यही हाल गार्गी का था। गार्गी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; गार्गी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो…

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Posted on November 10, 2020 at 8:30am — 4 Comments

दिल के हाल सुने दिलवाला (लघुकथा)

"अपनी पैरों से रौंदें, दूजी जो भा जाये!"



"घर की मुर्ग़ी दाल बराबर; नयी पीढ़ी को कौन समझाये!"



अपनापन त्याग कर ख़ुदग़र्ज़ी, मनमर्ज़ी, दोगलापन, पागलपन, बचकानापन दिखाती अपने मुल्क की नई पीढ़ी की सोच और पलायन-गतिविधियों पर दो बुजुर्गों ने अपनी-अपनी राय यूं ज़ाहिर की।



"... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' कहावत को छोड़ो जी; ओल्ड इज़ सोल्ड! नई पीढ़ी है सो बोल्ड! उन्हें ज़मीनी स्टोरीज़ टोल्ड हों या अनटोल्ड! हम बुड्ढे तो हुए क्लीन-बोल्ड!" उनमें से एक ने दूसरे से कहा, लेकिन ख़ुद के…

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Posted on March 10, 2020 at 2:34pm — 4 Comments

हिताय और सुखाय (संस्मरण)

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Posted on November 23, 2019 at 1:00pm — 7 Comments

Comment Wall (13 comments)

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At 12:50am on October 5, 2018, mirza javed baig said…

आली जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब, 

मुझे अपनी दोस्तों की फ़ेहरिस्त में जोड़ने का शुक्रिया 

At 6:43am on July 2, 2018, राज़ नवादवी said…

"आदरणीय Sheikh Usmani साहब, तरही मुशायरे में मेरी ग़ज़ल में शिरकत का दिल से शुक्रिया. समयाभाव था, कमेंट बॉक्स बंद हो चुका है. इसलिए यहाँ से आभार प्रकट कर रहूँ हूँ.सादर "

At 11:59am on April 12, 2018, MD SHAFIQUE ASHRAF said…

जी बहूत  बहुत शुक्रिया जनाब ... नया हूँ .... थोड़ा सीखने का मौका दीजिये  

At 10:23am on January 8, 2017, Dr Ashutosh Mishra said…
आदरणीय शेख भाई जी आपके मित्रों की सूची में खुद को शामिल पाकर मैं सुखद अनुभूति कर रहा हूँ आपकी लघु कथाएं इस मंच पर मेरे बिशेष आकर्षण का केंद्र है आपकी हर लघु कथा मैं पढता हूँ आपकी कलम सृजन के नए आयाम स्थापित करती रहे ऐसी अपनी शुभकामनाओं के साथ सादर
At 8:23pm on August 5, 2016, pratibha pande said…

आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ  आदरणीय उस्मानी जी  ,आपका रचनाकर्म हर दिन नई बुलंदियां छुएँ ,ये कामना करती हूँ 

At 7:30am on June 20, 2016, सुरेश कुमार 'कल्याण' said…
श्रद्धेय शेख शहजाद उस्मानी साहब ये सब तो आप जैसे मित्रों के सहयोग से ही हुआ है और आशा करता हूं कि भविष्य में भी मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे। हृदय की गहराईयों से धन्यवाद ।
At 8:42am on May 24, 2016, महिमा वर्मा said…

आभार आपका आ.शेख उस्मानी सर जी,अभी जानकारी  पूरी नहीं है ,तो आपको जवाब देने में देर हो गई.पुनः आभार आपका .

At 2:11pm on May 1, 2016, pratibha pande said…

मित्रता के लिए आभार 

At 8:41am on November 18, 2015, pratibha pande said…

हार्दिक आभार आपका आदरणीय 

At 9:27am on November 4, 2015, kanta roy said…

देखी वफ़ा-ए-फ़ुरसत-ए-रंज-ओ-निशात-ए-दहर

ख़मियाज़ा यक दराज़ी-ए-उमर-ए-ख़ुमार था---- 

मिर्ज़ा ग़ालिब साहब का ये शेर आज आपके लिए
असीम शुभकामनाएँ आपको आदरणीय शहजाद जी।

 

 
 
 

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