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ब्राहम्ण
उषा अवस्थी
मान दिया होता यदि तुमने
ब्राम्हण को , सुविचारों को
सदगुण की तलवार काटती
निर्लज्जी व्यभिचारों को
उसको काया मत समझो ,
ज्ञान विज्ञान समन्वय है
द्वैत भाव से मुक्त, जितेन्द्रिय
सत्यप्रतिज्ञ , समुच्चय है
कर्म , वचन , मन से पावन
वह ब्रम्हपथी , समदर्शी है
नहीं जन्म से , सतत कर्म से
तेजस्वी , ब्रम्हर्षि है
मौलिक एवं अप्रकाशित
पूजा बता रहे हैं
उषा अवस्थी
पाले हैं,यौन कुंठा
पूजा बता रहे हैं
न जाने ऐसे लोग
किस राह जा रहे हैं?
रचते हैं ढोंग ज्ञान का
कल्मष बढ़ा रहे हैं
लिखते अभद्र भाषा
निर्मल बता रहे हैं
अपने ही मन की ग्रन्थि
सुलझा न पा रहे हैं
बच्चों तथा युवजन को
क्या -क्या सिखा रहे हैं?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on October 11, 2023 at 3:58am — 1 Comment
कुछ विचार
उषा अवस्थी
राष्ट्र, समाज, स्वयं का
यदि चाहें कल्याण
चोरी, झूठ, फरेब से
है पाना परित्राण
अशुभ निवारक गुरु चरण
वन्दन कर, छल त्याग
जिनके दर्शन मात्र से
पाप, शोक हों नाश
यह दुनिया हर निमिष पल
गिरे काल के गाल
क्यों पाना इसको भला?
जहाँ बचे न भाल
इस अनन्त ब्रम्हाण्ड में
पृथ्वी का क्या मोल?
पल-पल, घिस-घिस छीजती
तोल सके तो…
ContinuePosted on October 8, 2023 at 6:52pm — 2 Comments
कलियुग
उषा अवस्थी
ब्रह्मज्ञानी उपहास का पात्र है
अर्थार्थी सिर का ताज है
किसको ,कब पटखनी दें? आँखें गड़ाए हैं
मिलते ही मौका, धूल में मिलाए हैं
कलियुग है,चाहते अपनी वज़ाहत है
दूसरों को मारकर जीने की चाहत है
श्रमिकों की मेहनत का हक़, हक़ से लेते हैं
जन्म-जन्मांतर पापों को ढोते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on September 23, 2023 at 5:37am — 2 Comments
मन नहीं है
उषा अवस्थी
अब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है
क्या कहें ? साहित्य के नाम पर
चलाए जा रहे व्यापार में
ख़रीद-फ़रोख़्त के बाज़ार में
बिकने का मन, नहीं है
अब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है
इस दुनिया की इक छोटी सी बस्ती में
रहती हूँ, कोई बड़ी हस्ती नहीं हूँ मैं
शकुनी की शतरंजी झूठी इन चालों से
मोहरों के बेवजह…
ContinuePosted on September 21, 2023 at 6:30am — 4 Comments
सुन्दर रचना केलिये हार्दिक अभिनंदन सुश्री उषा अवस्थिजी ।
ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए.... |
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